उत्तराखंड में 1876 में दिखा था पहाड़ी बटेर

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

समृद्ध जैव विविधता वाले उत्तराखंड में परिदों का संसार भी खूब फल-फूल रहा है। पक्षियों की 700 से अधिक प्रजातियां यहां वास करती हैं। हालांकि, दुभार्ग्यपूर्ण है कि मसूरी और नैनीताल की शान कहा जाने वाला हिमालयन माउंटेन क्वेल अब उत्तराखंड में नहीं दिखता।मसूरी में 146 वर्ष से पक्षी प्रेमी इस पक्षी के दीदार के इंतजार में हैं। नैनीताल में भी इस पक्षी को वर्ष 1836 से नहीं देखा गया है। प्रदेश में किए जा रहे ग्रेट हिमालयन बर्ड काउंट में इस बार भी पक्षी प्रेमी हिमालयन माउंटेन क्वेल की उपस्थिति दर्ज होने की आस लगाए बैठे हैं। एक दौर में देहरादून से मसूरी जाने के लिए राजपुर से झड़ीपानी के बीच पैदल ट्रैक सबसे महत्वपूर्ण और बेहद रोमांचक होता था। प्राकृतिक नजारों के बीच घने जंगलों से गुजरने वाला यह मार्ग आज भी प्रकृति प्रेमियों को अपनी ओर खींचता है। इस क्षेत्र में 120 प्रजातियों के परिंदों का खूबसूरत संसार बसता है।इनमें से 90 प्रजातियां तो अकेले राजपुर क्षेत्र में ही दर्ज की गई हैं। झड़ीपानी इसलिए भी अहम है कि 19वीं सदी में यहां हिमालयन माउंटेन क्वेल का राज था। इसे स्थानीय भाषा में पहाड़ी बटेर कहा जाता था। यह पक्षी देश में अन्य कहीं नहीं पाया जाता था। उत्तराखंड में मसूरी और नैनीताल ही इसका घर हुआ करते थे। दुभार्ग्यवश वर्ष 1836 में यह पक्षी नैनीताल में आखिरी बार देखा गया तो मसूरी में वर्ष 1876 के बाद हिमालयन माउंटेन क्वेल को नहीं देखा गया। वर्ष 2009 से हिमालयन माउंटेन क्वेल की तलाश में जुटी संस्था एक्शन एंड रिसर्च फार कंजर्वेशन इन हिमालयन (आर्क) के संस्थापक सदस्य का कहना है कि यह परिंदा सिर्फ मसूरी और नैनीताल में ही देखा जाता था। 1876 से पूर्व इस पक्षी को 1865 में 1867 में देखा गया था । 1865 में कैनेथ मैक्नन ने मसूरी में बुद्धि राजा तथा बेकनाग के बीच एक जोड़े को मारा था। मसूरी में ही 1867 में जेवपानी में कैप्टन हटन ने घर के पास करीब एक दर्जन पक्षियों को देखा जिसमें से उन्होंने पांच पक्षियों को मार गिराया और इनकी खाल उतार कर ब्रिटिश संग्रहालय में भेजी ।1876 के बाद यह पक्षी फिर कभी नहीं दिखाई दिया। वीनॉग माउंटेन बटेर अभयारण्‍य को 1993 में स्‍थापित किया गया था, जो लाईब्रेरी प्‍वांइट से 11 किमी. दक्षिण में स्थित है। यह अभयारण्‍य 339 हेक्‍टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ है जो हिमालयन बटेर या पहाड़ी बटेर के लिए जाना जाता है। यह पक्षी, वर्तमान में विलुप्‍त माने जा रहे हैं। इस पक्षी को पिछली बार 1876 में देखा गया था। इसकी खोज के लिए आर्क अब नए सिरे से रणनीति तैयार कर रहा है। इस बार किए गए ग्रेट हिमालयन बर्ड काउंट में इसकी उपस्थिति दर्ज होने की उम्मीद थी। आज सर्वेक्षण की रिपोर्ट सार्वजनिक होने पर स्थिति स्पष्ट हो सकेगी है
लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।