जवां उत्तराखंड, घोटालों की कालिमा और निराशा के चक्रव्यूह में फंसा घुटता बेरोजगार युवा
दिनेश तिवारी एडवोकेट
उत्तराखंड राज्य की लड़ाई में अपने शानदार बैंक अधिकारी के करियर को छोड़ कर सक्रिय राज्य आंदोलनकारी की भूमिका को चुनते वक़्त पद्मेश दा ने कभी यह सोचा भी नहीं होगा कि जिस अलग पर्वतीय राज्य के निर्माण के लिए वह अपनी सरकारी नौकरी को लात मार कर सड़क पर उतर रहे हैं वह राज्य अपने जीवन के इक्कीस वर्षों में ही भ्रष्टाचार के दलदल में धँस जाएगा । और जीवन के महत्वपूर्ण बीस वर्ष उतराखंड राज्य के निर्माण में झोंक देने के बाद परिणाम यह आएगा कि उनका अपना ही बेटा शुभम नौकरी पाने के लिए रोज़गार दफ़्तरों के चक्कर काट कर थक जाएगा और विभिन्न क़िस्म के नौकरी देने वाले आयोग उसकी सारी उम्मीदों , सम्भावनाओं को गन्ने के मशीन की तरह निचोड़ कर गटर में फैंक देंगे .
अब यह एक पद्मेश दा और शुभम की कहानी ही नहीं है बल्कि ऐसा वाक़या है जिसका सामना उत्तराखंड का हर युवा कर रहा है । यहाँ भ्रष्टाचार का दलदल ही दलदल है । जिस तरफ़ नज़र दौड़ाओ भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार दिखायी पड़ता है। राज्य की नौकरशाही हो या चुने हुए प्रतिनिधियों का इतिहास गवाह है कि भ्रष्टाचार अब संस्थाबद्ध होकर ख़ुद एक मज़बूत सिस्टम बन गया है । हालाँकि राज्य में किसी भी भर्ती में भर्ती घोटाला कोई नयी बात न हो कर आम घटना ही है । यहाँ एक फ़ाइल बंद होती है की तीन नयी खुल जाती हैं । हर सरकारी भर्ती के बाद नियुक्तियों में धाँधली , परीक्षा में गड़बड़ी , पेपर लीक होना और फिर माननीय उच्च न्यायालय में रिट फ़ाइल होना और नियुक्तियों का स्टे हो जाना यह सब इस राज्य के जन्म से ही होता आ रहा है । ऐसा देखते और भोगते हुए एक जवान पीढ़ी प्रौढ़ हो गयी है और एक युवा पीढ़ी प्रौढ़ होने के रास्ते पर निकल गयी है । यहाँ चारों तरफ़ सड़ान्ध ही सड़ान्ध है ।पूरी ब्यवस्था को दीमक चाट रही है। सिस्टम का इंफ़्रास्ट्रक्चर दम तोड़ रहा है । हालात से परेशान , थका हुआ , लाचार , मायूस युवा कभी जिस दीवार को चुटकी में लाँघ जाता था अब उसी दीवार पर बैठ कर अपनी नियति को कोश रहा है , कराह रहा है । वह जाए तो कहाँ जाए ? किस से अपना दुःख कहे । न कोई सुनने वाला न कोई समझने वाला , न कोई संगठन न कोई राजनैतिक दल जो ईमानदारी से राज्य की युवापीढ़ी का दर्द समझे और नेतृत्व करे . हर तरफ़ अंधकार फैला हुआ है और निराशा पूरी जवानी को आहिस्ता आहिस्ता लील रही है .ताज़ा पेपर लीक का प्रकरण उन अनेक भर्ती घोटालों और अन्य घोटालों की केवल अगली कड़ी भर है । पुरानी कहानी के नए वाक़ये और नए किरदार ! बाँकी सब वैसा ही है जैसा कि यहाँ का अवाम देखते , सुनते और भोगते आ रहा है । अब यह जो हंगामा बरपा है वह दिसम्बर २०२१ में हुई स्नातक स्तरीय परीक्षा के पेपर लीक होने की बड़ी घटना से जुड़ा है । मामला यह है कि उतराखंड अधीनस्थ चयन आयोग ने राज्य के अनेक विभागों के ९१६ पदों के लिए जो भर्ती प्रक्रिया शुरू की उसके पेपर लीक हो गए ।राज्य के एक लाख , साठ हज़ार युवाओं ने चार – पाँच दिसम्बर २०२१ को आयोजित इस परीक्षा में हिस्सा लिया और ०८ एप्रिल २०२२ को इस परीक्षा के नतीजे भी घोषित कर दिए गये । नतीजों के घोषित होते ही अभ्यर्थियों में असंतोष की लहर दौड़ गयी और परीक्षा में धाँधली के आरोप लगने लगे ।इस परीक्षा में शामिल अभ्यर्थियों और बेरोज़गार संगठनों ने प्रदेश भर में प्रदर्शन किए और पूरे प्रकरण की न्यायिक जाँच की माँग को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी गुहार लगायी । मुख्यमंत्री के निर्देश पर २२ जुलाई को देहरादून के रायपुर थाने में एफआइआर दर्ज की गयी और मामले की जाँच का ज़िम्मा एसटीएफ को सौंप दिया गया ।निरंतर चल रही अपनी जाँच के तहत एसटीएफ अभी तक २५ लोगों को गिरफ़्तार कर चुकी है और यह कहना मुश्किल है कि यह जाँच कहाँ जाकर रुकेगी और अभी और कितने और कौन कौन गिरफ़्तार होंगे ।दिलचस्प है कि इन गिरफ़्तारियों में राजनेता , सचिवालय के कर्मचारी , पुलिसकर्मी , आउटसोर्सिंग एजेन्सी , अभ्यर्थी , कोर्ट के कर्मचारी , और कोचिंग सेंटर के लोग शामिल हैं।
उत्तराखंड राज्य में घोटाले कोई नयी बात नहीं है लेकिन सरकारी नौकरियों की भर्ती में भी घोटालों की बढ़ती फ़ेहरिस्त हैरान करती है । इस मामले में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की अधिकांश परीक्षाएँ विवाद और संदेह के घेरे में हैं । अगर देखा जाए तो आयोग की रही सही शाख़ भी पेपर लीक प्रकरण ने मिट्टी में मिला दी है । यहाँ २०१६ में हुई ग्राम पंचायत विकास अधिकारी के १९६ पदों पर हुई भर्ती की प्रक्रिया से आयोग की कार्य प्रणाली को बेहतर ढंग से देखा और समझा जा सकता है । उस समय के इस चर्चित मामले में दो सगे भाइयों के एक साथ टॉपर बनने और ऊधमसिंह नगर जिले के एक ही गाँव के २० से अधिक युवाओं के चयनित हो जाने से आयोग सवालों के घेरे में आ गया था । तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने परीक्षा की उच्चस्तरीय जाँच के आदेश दिए थे और आयोग के अध्यक्ष आरबीएस रावत को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था । इस मामले में माननीय उच्च न्यायालय ने आयोग द्वारा की गयी भरतियों को रद्द कर दोबारा से लिखित परीक्षा कराने के आदेश दिए थे । यह तथ्य और दिलचस्प है कि २५ फ़रवरी २०१८ को जब आयोग ने दोबारा परीक्षा आयोजित की तो २०१६की परीक्षा में चयनित १९६ परीक्षार्थियों में से इस दूसरी परीक्षा में केवल ०८ उम्मीदवार ही पास हुए थे । इसके अलावा सचिवालय रक्षक और कनिष्ठ सहायक के पदों पर हुई नियुक्तियाँ , और जुडिसियरी की परीक्षाओं में भी गड़बड़ियों की पुष्टि के बाद मामले की जाँच का काम एसटीएफ को सौंपा गया है। एक अन्य महत्वपूर्ण मामले की जाँच भी एसटीएफ कर रही है । यह जाँच साल २०२० में आयोजित फ़ारेस्ट गार्ड परीक्षा से जुड़ी है जिसमें आरोप है कि नक़ल माफ़िया ने ब्लू टूथ के माध्यम से परीक्षार्थियों को नक़ल करवायी है । अगर इतिहास के पन्ने पलटें और उत्तराखंड में भ्रष्टाचार के आँकड़ों पर ग़ौर करें तो देवभूमि के वाशिंदों को घटनाएँ विचलित और शर्मसार कर सकती हैं । संदेह के दायरे में पंडित नारायण दत्त तिवारी के मुख्यमंत्रीकाल का पटवारी भर्ती घोटाला , २००२- २००३ का इन्स्पेक्टर भर्ती घोटाला , मुख्यमंत्री खंडूरी के समय में हुआ ढेंचा बीज़ घोटाला २०१० में मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के समय का चर्चित स्टूजिया ज़मीन घोटाला और जलविद्युत परियोजनाओं के आवंटन में हुआ घोटाला , २०१३ में केदार घाटी में आयी आपदा के बाद चले पुनर्निर्माण कार्यों में आपदा किट घोटाला , २०१३ में ही तत्कालीन सीएम विजय बहुगुणा पर यह आरोप लगा था कि देश में टिहरी डैम के ऊपर बन रहे देश के सबसे बड़े सस्पेंशन पुल के निर्माण से जुड़ी कम्पनी को बिना काम पूरा किए ही १०० करोड़ का अग्रिम भुगतान कर दिया गया है .यहाँ २०१८ में लोक सेवा आयोग द्वारा की गयी लेक्चरर भर्ती की परीक्षाओं के परिणाम का ज़िक्र भी बहुत ज़रूरी है ।इन परीक्षाओं पर भी धाँधली के गम्भीर आरोप हैं और आयोग संदेह के घेरे में है ।इस नवोदित राज्य के इतिहास में एनएच ७४ भूमि मुआवज़ा घोटाला बड़े घोटालों की फ़ेहरिस्त में दर्ज है । इस मामले में राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण में किसानों को आवंटित की जाने वाली मुआवज़ा राशि के आवंटन में लगभग २५० करोड़ के घोटाले का आरोप है । यह मामला २०१६ -१७ को रिपोर्ट किया गया जिसमें बृहद जाँच के बाद दोषी पाए गए कई अधिकारियों पर मुक़दमे फ़ाइल किए गए और कई वरिष्ठ नौकर शाहों को जेल की हवा भी खानी पड़ी । इस मामले में दो आइ ए एस अधिकारियों को निलंबित भी किया गया । हालाँकि कालांतर में कुछ ही समय बाद उन्हें बहाल भी कर दिया गया । इसी कड़ी में २०१८ में एक जनहित याचिका के बाद उजागर हुआ ५०० करोड़ रुपए का दशमेतर छात्रवृति घोटाला भी है । इस घोटाले के तथ्य हैं कि २००३ और २०१६ के दरमियान समाज कल्याण विभाग ने कई सरकारी और ग़ैर सरकारी शिक्षण संस्थानों के साथ मिलकर एससी और एसटी छात्रों को दी जाने वाली छात्रवृति में घोटाला किया । उच्च न्यायालय के आदेश के बाद इस मामले में सरकार को एसआइटी से जाँच करानी पड़ी और कई समाज कल्याण अधिकारियों , कर्मचारियों , शिक्षण संस्थानों के ख़िलाफ़ मुक़दमा क़ायम कर उन्हें अरेस्ट करना पड़ा ।इसके अलावा २०१८ में सामने आया राशन घोटाला , सिडकुल घोटाला , उत्तराखंड भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड में हुए घोटाले और हरिद्वार में हुए कुंभ में कोरोना टेस्टिंग में हुए व्यापक घोटाले कुछ ऐसे ही घोटाले हैं जिनसे देवभूमि शर्मसार हुई है ।
आबादी के हिसाब से देखें तो आज का उत्तराखंड युवा उत्तराखंड है । इसके सपने भी युवा हैं और निर्माण की प्रक्रिया भी नयी है । किसी भी देश और राज्य के जीवन में एक दौर ऐसा भी आता है जब युवाओं की आबादी में भारी वृद्धि होती है। आज का उत्तराखंड अपनी युवा आबाद के साथ ऐसे ही समय से गुज़र रहा है । लेकिन इस युवा उत्तराखंड की बड़ी त्रासदी यह है कि यहाँ बेरोज़गारी सबसे अधिक है . इसी बेकारी के कारण युवा बड़े पैमाने पर पलायन करने को भी मजबूर हैं ।इस सब के बीच यह और तकलीफ़देह है कि समकालीन सरकारों ने इस युवा प्रदेश को सबसे अधिक बेरोज़गार और भ्रष्ट राज्य में बदल दिया है ।
लेखक अधिवक्ता एवं सोशल एक्टिविस्ट हैं।
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