रानीखेत में हिंदी दिवस सप्ताह पर ‘काव्य कलरव’,रचनाकारों ने अपनी काव्य रसधारा से श्रोताओं को किया सराबोर
रानीखेत– हिंदी दिवस सप्ताह के अवसर पर यहां छावनी इंटर कॉलेज के सभाकक्ष में काव्य कलरव नाम से काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें नगर व क्षेत्र के रचनाकारों, साहित्यप्रेमियों ने शिरकत की। गोष्ठी में रचनाकारों ने अपनी काव्य रसधारा से श्रोताओं को सराबोर कर दिया। नवोदित कवयित्रियों की एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियों ने माहौल में समां बांध दिया।
काव्य कलरव की शुरुआत गीता पवार ने कुमाउनी में मां ज्ञानेश्वरी की वंदना से की।तदुपरांत कवयित्री ज्योति साह ने बचपन को जीवन का बेहतरीन हिस्सा बताते हुए अपने बचपन की यादों को ताज़ा करते कहा-‘ओ बचपन फिर आना,फिर वही शरारत ले आना,मेरे साथी मेरे बचपन,ले नया नाम नव भावों में,नव जीवन का नव तराना।’ डॉ विनिता खाती ने हिन्दी भाषा के प्रति अगाध लगाव कुछ इस तरह व्यक्त किया -‘चाहे उच्च वर्ग की प्रिय हो हिंदी,मेरी और जनमानस की प्रिय बोली है हिंदी, वर्ग भेद का भाव मिटाती मेरी हिंदी,मां की ममता का आभास दिलाती मेरी हिंदी।’ इसी क्रम में हिंदी को महनीय भाषा बताते हुए सोनाली रतूड़ी ने अपनी पंक्तियां कुछ ऐसे बिछायी-‘मैं हिंदी एक भाषा हूं,एक संस्कृति एक सभ्यता हूं।’हिंदी की महिमा को आगे बढ़ाते हुए सीमा भाकुनी ने हिंदी की सहजग्राह्यता पर पंक्तियां पढ़ी -‘सरल सहज लगती है मुझको ,वह है एक ही भाषा, हिंदी मेरी अपनी भाषा।’
काव्य कलरव में सीता की व्यथा सुनाते हुए सारिका वर्मा ने शब्दोद्गार कुछ यूं व्यक्त किए -हे राम क्यों मेरा त्याग किया,ऐसा भी क्या मैंने पाप किया,उस रावण ने था मुझे छला,बन साधु ऐसी चाल चला।’ देव कुमार ने अपनी हिंदी का सफर , हिंदी की बोलचाल कविता से प्रशंसा बटोरी। साहित्यकर्मी विमल सती ने व्यवस्थागत असंतोष पर अपनी कविता सुनाते कहा ,-मेरे छत पे टंगा चांद काला क्यों हैं, जिन्हें काले कारनामे छिपाने की चाहत,उनके चौबारे पे उजाला क्यों है।’ पूर्व सैनिक संजय सिंह लुंठी ने धरती मां का सजदा करते हुए कहा -‘ये धरती मेरी मां है,जीना यहां इसमें,मरना यहां है।’ शक्ति वर्मा ने अपनी कविता -‘भरी सभा में खड़ी द्रोपदी चीख-चीख कर पुकार रही,ज्ञानी, ध्यानी, शीलवान और महावीरों को ललकार रही।’नारी की व्यथा और प्रताड़ना के दर्द को द्वापर युग की चौखट पर ले जाकर कुछ ऐसे व्यक्त किया कि श्रोताओं को झिंझोड़ कर रख दिया। इमरान परवीन ‘हिंदी भाषा का मान ही देश की शान है।’और प्रीति पंत ने ‘अपनी भाषा बोलना होता है बहुत जरूरी , बिन निज भाषा पहचान हमारी पहचान रहती है अधूरी।’ कविताओं से हिंदी भाषा की महत्ता को शब्दमाल पहनाई। इसके अलावा गीता पवार, राजेन्द्र प्रसाद पंत ‘राजू ‘ने भी कविता पाठ किया। जगदीश उपाध्याय ने हिंदी पर विचार रखे। संचालन गीता पवार ने किया।
श्रोता दीर्घा में मुख्य रूप से हरीश लाल साह, दीप त्रिपाठी, उमेश चंद्र जोशी, अजय प्रताप सिंह, अकील, चंदन कुमार, गोपाल नाथ,गौरव भट्ट, अभिषेक कांडपाल सहित अनेक गणमान्य नागरिक मौजूद रहे।