‘काव्य कलरव’ रानीखेत:’आज फिर उन्हें जिंदगी का बोझ सर पर उठाते देखा..।’काव्य रस धारा में डूबते-उतराते खूब आनंदित हुए श्रोता

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रानीखेत: यहां ‘कवि जन हिताय’ और सांस्कृतिक समिति के तत्वावधान में आयोजित ‘काव्य कलरव‌’ में रचनाकारों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को घंटों तक मंत्र मुग्ध किए रखा। गोष्ठी की अध्यक्षता वयोवृद्ध साहित्यकार डॉ विश्वम्भर बिशन दत्त जोशी और मंच संचालन साहित्यकर्मी, रंगकर्मी विमल सती ने किया।

‘काव्य कलरव’ की शुरूआत डॉ बिशन दत्त जोशी द्वारा मां वागीश्वरी की वंदना से की गई। तदोपरांत जी डी बिरला स्कूल के शिक्षक मिथिलेश मिश्रा ने रात के बारह बजे, मैं दिन भर की धमाचौकड़ी से..।. रचना के माध्यम से‌ लोगों की संवेदनाओं को झकझोरने का प्रयास करते हुए खूब सराहना अर्जित की। पूर्व शिक्षक वरिष्ठ काव्यकार देवकीनंदन कांडपाल ने शुभ्र हिमालय को संबोधित कविता में कहा,’जबसे मुझमें विवेक जागा, हिमालय तेरे अनेक रूप को‌ देखा..।’ उन्होंने ‘धुरपना धुर धुर पना.. कुमाऊनी रचना से भी श्रोताओं का दिल जीता।नवोदित रचनाकार श्रेया तिवारी ने ओज पूर्ण कविता ‘सम्मान दिवस है सेनाओं के शौर्य का..सुनाकर अपने रचनाकर्म की पहली दस्तक दी। नवोदित कलम प्रेरणा मेहरा ने पहली रचना में उत्तराखंड से रानीखेत तक का दृश्यचित्रण करते कहा, ‘ऊंचे हिम पर्वत से लेकर, समतल यहां के खण्ड है,कभी फूल रही फुलवारी है तो, ..हां!ये मेरा उत्तराखंड महान है।’वहीं मौजूदा दौर पर कहा,’ये कैसा रुद्र शंखनाद है,ये कैसा ढोल निनाद है’।

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युवा कवयित्री प्रीति जोशी’ ने रानीखेत से आत्मीय लगाव पर‌ रचना पढ़ी’रानीखेत बेशक तुमसे मुलाकात देर से हुई..। वहीं बेटी की विदाई कविता के माध्यम से व्यावहारिक समझ, रिश्तों की नाजुकता व संबंधों की नजाकत को समझने के संस्कार देती मां को केंद्र पर रखकर‌ शब्द बुने। वहीं सीमा भाकुनी ने स्त्री स्वतंत्रता पर कुछ यूं बयां किया,’ये नाकामियां,ये बेड़ियां रोक पाएंगी न मुझे..। जगदीश उपाध्याय ने पर्यावरण की चिंता पर अपनी कविता पढ़ते हुए कहा’ जंगल जल रहे हैं तो जलने दो..।’ युवा कवि संजय रौतेला ने जीवन की कशमकश पर यूं कहां, ‘ज़िंदगी का क्या है,वो रोज तुम्हें पटक देगी..।’वही गृह नगर से अपने प्यार को ‘मैं तुमसे प्यार करता हूं,मैं तुमसे प्यार करता हूं।’ पंक्तियों के जरिए बयां किया। कवयित्री गीता पवार ने ‘तेरी बल्याई ल्यूला मैं’कविता से‌ अपने क्षेत्र की सौन्दर्य महिमा का बखान किया वहीं ‘अगर में बोल उठूंगी’ मुक्तक पेश कर नारी चेतना को स्वर दिए।

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कवयित्री अंकिता पंत बिष्ट ने लड़कों की जीवन दुश्वारियों का खाका खींचते हुए कहा,’कैसे कह दूं,लड़का होना आसान बड़ा है।’ वहीं रानीखेत की विशेषता पर कहा,शहर मेरा छोटा, लेकिन खास है।’ एडवोकेट दिनेश तिवारी ने शहर में अपनी मांगों के लिए संघर्ष करते बाशिंदों पर ‘अपने लिए बोलते लोग अच्छे लगे।’कविता से श्रोताओं की तालियां अर्जित की वही पुरूषों के हिमायती समाज में स्त्री को दर्द को यूं बयां किया’ देह‌ मेरी ,अधिकार तुम्हारा..।’युवा कवि अमित तिवारी ने अपनी कविता में कहा,’सीता की चाह है तो राम बनना पड़ेगा।’ उमा जोशी ने पहाड़ के लड़कों पर कुमाउनी कविता ‘पहाड़’न में ऊं च्यल भल छी..।सुनाकर‌ वाह- वाही लूटी।वहीं रानीखेत‌ से रूबरू कराती कविता सुनाई। डॉ विनीता खाती ने ‘उत्तराखंड की धरती धन्य है ।’ कविता से मातृभूमि का महिमा मंडन किया।प्रीति पंत ने’ जिंदगी आसान नहीं बनानी पड़ती है..। कविता‌ सुनाकर खूब तालियां बटोरी।रचनाकर्मी नीरज सिंह फर्त्याल ने ‘तेरी याद..।’कविता पढ़ कर युवाकाल की यादें साझा की। शक्ति वर्मा ने शहर‌ में गर्द है,कोई झाड़ता नहीं..।कविता पढ़ी साथ ही ‘साहित्यकार तुम चुप क्यों हो..।कविता से साहित्यकार‌ की स्थिति को बयां किया। राजेन्द्र पंत ‘राजू ‘ने पहाड़ की मेहनतकश ग्रामीण महिलाओं के दर्द को शब्द देते कहा ‘आज फिर उन्हें जिंदगी का बोझ सर पर उठाते देखा..।

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करीब दो घंटे चले काव्य कलरव में श्रोता निरंतर प्रवाहित काव्य रस धारा में डूबते-उतराते खूब आनंदित रहे।