एक थे ‘चणी रौ सौज्यू’
पहली पुण्य तिथि पर विशेष
इस फानी दुनिया के रंगमंच में हमारी पसंद को ध्यान में रखकर कथानक नहीं बुना जाता,कथ्य ,शिल्प और निर्देशन ईश्वर ही रचता है और उसे अभिनय के लिए जिस कलाकार की जरुरत होती है उसे बुला लेता है।शायद स्व.जगदीश प्रसाद साह का जीवंत अभिनय ईश्वर को भी भा गया हो।विगत वर्ष कोरोना काल में 3 मई 2021 को स्व.साह जी हमसे ज़ुदा हो गए।22 अप्रैल को उनकी प्रथम पुण्य तिथि है ऐसे में इस हरदिलअज़ीज कलाकार की यादों को संजोना समीचीन होगा।
8 अक्टूबर 1939 को नैनीताल में जन्मे स्व.जगदीश प्रसाद साह की शिक्षा-दीक्षा काठगोदाम में हुई।यहां अपने पैतृक घर पर ही उनका बचपन बीता।बचपन से ही वे यहां सांस्कृतिक गतिविधियों में जुड़े रहे।रामलीला में अभिनय और स्थानीय रहवासियों के बीच हंँसी-ठट्टा करने के कारण वे काफी लोकप्रिय हो गए।आज भी उस दौर के लोग मृत्योपंरात अपने ‘जगदीश’ को याद करते हैं।सत्तर के दशक में उनका स्थानांतरण काठगोदाम परिवहन डिपो से रानीखेत डिपो के लिए हो गया।रानीखेत में जरुरी बाजार को उन्होंने अपने रहवास के लिए चुना।रानीखेत में अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों के कारण यहां के लोगों के मध्य जल्दी ही अपनी पहचान बनाने में वे कामयाब रहे।
रानीखेत खडी़ बाजार रामलीला के स्व.जगदीश प्रसाद साह महत्वपूर्ण किरदार बन गए थे।एक विदूषक के तौर पर उन्हें यहां से अपार प्रसिद्धि मिली।उनके मंच पर नमूदार होने मात्र से अफाट दर्शकों से ठसे पंडाल में ठहाके तारी हो जाते। अपने तकियाकलाम ‘चणी रौ यार..’ को वे इस अंदाज में कहते कि दर्शक हँसी से लहालोट हो जाते।इस एक संवाद के कारण ही जनमानस के बीच वे जगदीश प्रसाद साह से ‘चणी रौ सौज्यू ‘बन गए। इस नाम से प्रसिद्धि ने उनके असली नाम को पीछे रख छोड़ था। रामलीला में ‘चणी रौ सौज्यू’की कुम्भकर्ण की भूमिका और लवकुश कांड में धोबी का किरदार मेरे लिए अपनी पेशोपेश में आज भी यादगार है कि किस तरह वह कुम्भकर्ण की भूमिका से माहौल में भय मिश्रित सन्नाटा उत्पन्न कर देते थे,गरजदार कुम्भकर्णीय अट्टाहास के साथ राक्षस बने लड़कों को गेंद की भांति दर्शकों के मध्य उछालना उनका एक अनोखा अंदाज था।वहीं इसके बरक्स धोबी की भूमिका में वे भरपूर हास्य बिखेर देते थे।किसी भी भूमिका में स्वयं को सौ फ़ीसदी झोंक कर ‘चणी रौ सौज्यू’उस किरदार को सजीव बना देते थे।
‘चणी रौ सौज्यू’ किसी संस्थान से प्रशिक्षित नहीं थे इसके बावजूद अभिनय, मंचसज्जा,रूपांकन में उन्हें दक्षता हासिल थी।यह कहा जा सकता है कि छोटे शहर के वे ‘बड़े’ पारंगत रंगकर्मी थे।
सत्तर के दशक में स्व.जगदीश प्रसाद साह उर्फ चणी रौ सौज्यू जरूरी बाजार के रचनाशील युवाओं द्वारा स्थापित संस्था ‘नव जागृति संघ’ से जुड़ गए और संस्था में परिश्रम और नैष्ठय भाव से सहयोग करने लगे।श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की झांकियों को तकनीकी रूप से आकर्षक बनाने के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।झांकी में दृश्यों की बुनावट और सजावट कैसी हो,प्रकाश के बिंब और ध्वनि के प्रभाव से प्रस्तुति को कैसे सजीव बनाया जाए यह स्व.साह जी से बेहतर कोई नहीं जानता था।झाँकियों में जीवंतता लाने के लिए सबसे पहले जल का प्रयोग उन्होंने ही शुरू किया।चाहे जल में टायरों का शेषनाग बनाकर उसमें बैठे विष्णु-लक्ष्मी को दर्शाना हो या जल में कान्हा से वस्त्र की गुहार लगाती गोपियां हों या फिर शिव की जटाओं से बहती जल धाराएं..इलैक्ट्रिक मोटर के माध्यम से वे इस तरह के दृश्यों में जान डाल देते थे।उनकी ‘भूतबंगला’ झांकी का रात्रिकालीन झाँकियों में विशेष आकर्षण होता था जिसमें तमाम तरीके के वेस्ट से वे अद्भुत डरावनी ध्वनियां उत्पन्न कर और अजब प्रकाश बिंबों के माध्यम से भयावह दृश्य का सृजन करते थे जिसकी एक झलक पाने को भारी भीड़ खूब धक्का-मुक्की करती दिखाई देती।एक झांकी अभिकल्पक के रूप में उनका काम सदा स्मरणीय रहेगा।
नंदादेवी के मूर्ति निर्माण में उनका कोई सानी नहीं था। नन्दादेवी के डोले में नगर भ्रमण के दौरान, बैटरी व विद्युत के प्रकाश की व्यवस्था उन्हीं के मस्तिष्क की आरम्भिक जुगाड़ बाजी थी। विभिन्न प्रकार की जुगाड़ू कलाकारी और उसके सफल प्रदर्शन में वे माहिर थे। प्रभावशाली कला प्रदर्शन का हुनर उनके रग-रग में व्याप्त था।
फैंसी ड्रैस में किसी भी किरदार को ‘चणी रौ सौज्यू’ बडी़ शिद्दत से जीते थे,स्वयं को उसी किरदार में ढाल लेते थे,एक बार शरदोत्सव में वे नेपाली कुली बनकर पूरे मेले में घूमते रहे,लोग अगल-बगल से गुजरते साह जी को नेपाली कुली ही समझते रहे,बाद में इस किरदार के लिए जब प्रथम पुरस्कार लेने मंच पर चढे़ तो लोगों की आश्चर्यमिश्रित प्रतिक्रिया थी ‘अरे!ये तो चणी रौ सौज्यू है।’
अभिनय के गुण से परिपक्व ‘चणी रौ सौज्यू’ ने अपने कला जीवन में अनेक पुरस्कार व सम्मान अर्जित किए।2017 में नंदादेवी समिति ने भी उनको विशेष रुप से सम्मानित किया। उन्हें अपने अभिनय के बूते रानीखेत में कुछ फिल्मों की शूटिंग के दौरान भी काम करने का अवसर मिला।रानीखेत परिवहन निगम वर्कशाप में इलैक्ट्रिक व मोटर तकनीशियन के कार्य में करीब चार दशक तक कार्यरत रहे साह जी का स्थानीय स्तर पर बड़ा सम्मानजनक जीवन रहा। सेवानिवृत्ति के बाद वे अपनी इलैक्ट्रिक व मोटर तकनीशियन का कार्य निजी रुप में अपने घर के नीचे दुकान खोलकर करते रहे।
सचमुच अद्भुत कलाकार थे ‘चणी रौ सौज्यू’। जिनकी सांसों में बसता था रंगकर्म,संवादों में बरसता था हास्य,और अंगुलियों से सिरज उठती थी अनुपम कलाकारी,जिससे वे उकेर लेते थे मस्तिष्क में उभरते दृश्यों और संरचनाओं को..।
रानीखेत के इस ‘रंगशीर्ष’को पहली पुण्यतिथि पर रंगकर्मी,एवं संस्कृति कर्मी श्रद्धा नमन करते हैं।
©️विमल सती