रानीखेत में आवारा कुत्तों में रेबीज़ फैलने से नागरिक दहशत में, छावनी परिषद के उपेक्षात्मक रवैये से बढ़ रही नाराज़गी
रानीखेत: छावनी क्षेत्र में इन दिनों आवारा कुत्तों में रेबीज फैलने से लोग दहशतज़दा हैं। आवारा कुत्तों के एक दूसरे को काटने से इसके और अधिक फैलाव के आसार हैं लेकिन इस खतरे को भांपते हुए भी छावनी परिषद किंकर्त्तव्यविमूढ़ है। यह सच है कि पशु क्रूरता अधिनियम ने निकायों के हाथ बांध दिए हैं लेकिन छावनी परिषद एनिमल बर्थ कंट्रोल प्रोग्राम की भी उपेक्षा कर रही है।
इस बीच छावनी नगर में रेबीज से पीड़ित कुत्तों का आतंक है।आज भी रेबीज ग्रस्त एक कुत्ते ने लोअर खड़ी बाजार चौराहे पर चार आवारा कुत्तों को काट लिया जिससे खतरा और बढ़ने की आशंका से स्थानीय नागरिक दहशत में हैं। यहां यह भी नीम सच्चाई है कि पिछले कुछ सालों में नगर में आवारा कुत्तों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है बावजूद इसके छावनी परिषद आवारा कुत्तों की गणना, नसबंदी और टीकाकरण से मुंह चुराए बैठी है और जाने-अनजाने नागरिकों को खतरे में डाल रही है जबकि छावनी परिषद को एक स्वैच्छिक संस्था के माध्यम से एनिमल बर्थ कंट्रोल प्रोग्राम चलाए वर्षों बीत चुके हैं।
ध्यातव्य है कि एनिमल बर्थ कंट्रोल प्रोग्राम यह सुनिश्चित करता है कि आवारा कुत्तों की नसबंदी की जाए और उन्हें एंटी-रेबीज शॉट्स के साथ टीका लगाया जाए, जिसके बाद उन्हें उनके मूल क्षेत्रों में छोड़ दिया जाए। रेबीज से बचाव में यह अभ्यास सबसे कारगर रहा है।
उल्लेखनीय है दशकों पहले छावनी परिषद में आवारा पागल कुत्तों को शूट करने का विधान था लेकिन पशु क्रूरता अधिनियम आने के बाद इसपर स्वत: प्रतिबंध लग गया। स्थानीय निवासियों का कहना है कि आवारा कुत्तों को दूर ले जाना चाहिए और जंगल में छोड़ देना चाहिए ताकि आस- पड़ोस में किसी और को काटने का खतरा न हो ऐसा इसलिए संभव नहीं कि कुत्तों का स्थानांतरण पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ते)नियम 2001के तहत ऐसा करना प्रतिबंधित है।सुप्रीम कोर्ट ने भी 2019 में कहा कि आवारा कुत्तों को पूरी तरह से हटाना गलत होगा, और आवारा कुत्तों की स्थिति को कैसे संभाला जाए, इसमें एक उचित संतुलन होना चाहिए; जानवरों को जीने का अधिकार देते हुए मनुष्यों के लिए खतरों को स्वीकार करना।
यहां बता दें कि पागल कुत्तों की लार ग्रंथियों, आक्रामकता और बिना उकसावे के काटने की प्रवृत्ति की विशेषता है। इन कुत्तों को पकड़ा जाता है, अलग-थलग कर दिया जाता है और निगरानी में रखा जाता है, और टीकाकरण और पुष्टि के बाद कि वे सुरक्षित हैं, उन्हें छोड़ दिया जाता है। यदि एक कुत्ते की हिरासत में मृत्यु हो जाती है, तो यह निर्धारित करने के लिए पोस्ट-मॉर्टम किया जाता है कि क्या रेबीज एक कारण था । लेकिन विडंबना यह है कि छावनी परिषद ऐसा कुछ भी करती दिखाई देती। अस्तु,छावनी परिषद को चाहिए कि एनिमल बर्थ कंट्रोल प्रोग्राम चलाकर आवारा कुत्तों की नसबंदी करना सुनिश्चित करे और उन्हें एंटी-रेबीज शॉट्स के साथ टीका लगाया जाए, बहरहाल इन दिनों आवारा कुत्तों में रेबीज ने नागरिकों की दहशत बढ़ा दी है।