जौनसार बाबर के स्वाधीनता आंदोलनकारी अमर शहीद केसरीचंद का 103वां जन्मोत्सव कार्यक्रम सम्पन्न
सी एम पपनैं
नई दिल्ली। देश की आजादी की 75वीं वर्षगांठ के अमृत महोत्सव पर देश के स्वाधीनता आंदोलन की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले उत्तराखंड जौनसार बाबर के वीर सपूत केसरीचंद का 103वां जन्मोत्सव कार्यक्रम गत सायं पूर्वी दिल्ली न्यू अशोकनगर स्थित डीपीएमआई सभागार में सम्पन्न हुआ।
जौनसार बाबर ट्राइबल वेलफेयर सोसाइटी’ के सौजन्य व ‘उत्तराखंड लोकभाषा साहित्य मंच’ तथा ‘उत्तराखंड एकता मंच’ के सहयोग से आयोजित कार्यक्रम में मुख्य रूप से रतन सिंह रावत (आईआरएस) मुख्य आयुक्त आयकर विभाग दिल्ली (चैयरमैन जौनसार बाबर जनजाति कल्याण समिति दिल्ली), कुलानंद जोशी (आईएएस) विशेष सचिव वित्त, दिल्ली सरकार, विद्या दत्त जोशी खाद्य विश्लेषक, खाद्य संरक्षण विभाग दिल्ली सरकार (अध्यक्ष जौनसार बाबर जनजाति कल्याण समिति दिल्ली) तथा डाॅ विनोद बछेती चेयरमैन डीपीएमआई मंचासीन रहे।
आयोजित जन्मोत्सव का श्रीगणेश उपरोक्त मुख्य वक्ताओ द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर व सभागार में उपस्थित सभी प्रबुद्ध जनों द्वारा अमर शहीद के चित्र पर पुष्पांजलि देकर किया गया।
आयोजक संस्था जौनसार बाबर ट्राइवल वेलफेयर सोसाइटी पदाधिकारी व कार्यक्रम संचालक कुंदन सिंह चौहान द्वारा मुख्य वक्ताओं तथा खचाखच भरे सभागार मे बैठे प्रबुद्व जनों का अमर शहीद केसरीचंद के 103वें जन्मोत्सव की बेला पर बडी संख्या में पहुच कर श्रद्धासुमन अर्पित करने हेतु अभिनन्दन, आभार व्यक्त किया गया। आयोजन सहयोग हेतु उत्तराखंड लोकभाषा साहित्य मंच, उत्तराखंड एकता मंच तथा डीपीएमआई का आभार व्यक्त किया गया। अमर शहीद केसरीचंद के जीवन पर निर्मित वृतचित्र का प्रदर्शन कर अमर शहीद की शहादत को याद किया गया।
मंचासीन मुख्य वक्ताओं में जौनसार बाबर जनजाति कल्याण समिति दिल्ली चैयरमैन तथा अध्यक्ष क्रमश: रतन सिंह रावत व विद्या दत्त जोशी के साथ-साथ कुलानंद जोशी व डाॅ विनोद बछेती का आयोजक संस्था द्वारा उत्तराखंडी टोपी पहना कर स्वागत अभिनंदन किया गया।
अमर शहीद केसरीचंद के जन्मोत्सव पर मंचासीन मुख्य वक्ताओ विद्या दत्त जोशी, रतन सिंह रावत, कुलानंद जोशी व डाॅ विनोद बछेती द्वारा अमर शहीद के देश प्रेम के जज्बे, छोटी सी उम्र मे देश की स्वाधीनता के लिए दिए गए बलिदान पर सारगर्भित विचार व्यक्त किए गए। वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, पहाड के लोगों की पहचान मेहनत, ईमानदारी व देश भक्ति से जुडी रही है। जौनसार के अमर शहीद केसरीचंद के जहन में बाल्यकाल से ही देश भक्ति का जज्बा था। इस बलिदानी ने लोगो के दिलो मे देशप्रेम का जज्बा जगा, युवाओं को प्रेरित किया। मात्र चौबीस वर्ष की उम्र मे देश की आजादी के लिए फांसी पर झूल कर भविष्य की पीढ़ी के प्रेरणा श्रोत बन कर, प्रेरणा की अमिट छाप छोड़ी है।
वक्ताओं द्वारा अवगत कराया गया जौनसार बाबर के ग्राम क्यावा मे 1 नवम्बर 1920 को पंडित शिवदत्त के घर जन्मे केसरीचंद बचपन से ही अति साहसी, नेतृत्व गुण सम्पन्न और देशभक्ति की भावना से कूट-कूट कर भरे हुए थे। स्वाधीनता आंदोलन मे भाग लेने व सहयोग देने हेतु, आयोजित बैठकों मे वे बाल्यकाल से ही भाग लेने लगे थे।
वक्ताओ ने व्यक्त किया, देश भक्ति का ही जूनून था 1941 मे वे 21 वर्ष की उम्र मे बारहवी पास कर रॉयल इन्डियन आर्मी सर्विस कोर मे सूबेदार के पद पर भर्ती हो गए थे। इसी वर्ष अपने बुद्धि कौशल के बल उन्होंने वायसराय कमीशन आफिसर का कोर्स भी पूर्ण कर लिया था। दूसरे विश्व युद्ध मे उन्हे मलाया भेजा गया। 15 फरवरी 1942 को जापानी सेना द्वारा उन्हे गिरफ्तार कर, बंदी बना लिया गया था।
वक्ताओ ने कहा, सुभाष चंद्र बोस के नारे ‘तुम मुझे खून दो, मै तुम्हे आजादी दूंगा’ से प्रभावित होकर ही केसरीचंद, सुभाष चंद्र बोस के संपर्क मे आए और आजाद हिंद फौज मे शामिल हो गए थे। इम्फाल मे अंग्रेजो के सामान को रोकने के लिए पुल उड़ाने की जिम्मेवारी निभाने मे पकड़े गए थे। उन्हे जेल भेज, दिल्ली के लालकिले मे मुकदमा चला था। उन्होंने कोर्ट परिसर मे ‘जय हिंद’ के नारे लगाए थे। 3 फरवरी 1945 को कोर्ट ने अपने फैसले मे केसरीचंद को 3 मई 1945 के दिन दिल्ली के लाल किले मे फांसी की सजा देने का फरमान जारी किया था।
फांसी से चंद घन्टे पहले पिता से हुई मुलाकात मे केसरीचंद ने पिता का साहस बढ़ाने हेतु कहा था, ‘आपका बेटा देश की आजादी के लिए काम आ रहा है, मुझे हंस कर विदा कीजिए।’ अपनी अंतिम इच्छा मे इस बलिदानी ने कहा था ‘भारत माता को गुलामी की बेड़ियों से आजाद देखना चाहता हूं। मेरे मृत शरीर पर कोई विदेशी कपड़ा न रखा जाए। शरीर खादी मे लपेटा जाय।’
प्रबुद्ध वक्ताओ ने कहा, जौनसार बाबर मे इस अमर शहीद की अमर गाथा को अलग-अलग तरीके से याद कर मनाया जाता है। जौनसारी बोली की कविताओं व गीतों मे गाकर याद किया जाना, उनकी अमर गाथा को नाटक में पिरो कर मंचित करना, सकुन देता है, प्रेरणा देती है। देहरादून चकराता रामताल गार्डन मे प्रतिवर्ष 3 मई के दिन इस जाबांज अमर शहीद के शहादत दिवस पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जो इस देश प्रेमी के कर्तव्यो की याद दिलाता है। हमारी रैजीमेंटो के सैनिक इस अमर शहीद की बीरता व बलिदान से प्रेरणा ले, दिन-रात देश की सीमाओं की रक्षा मे तत्पर रह, कर्तव्य निर्वाह कर जीवन मे त्याग करते हैं।
वक्ताओ द्वारा अवगत कराया गया, पिछले वर्ष ही दस्तावेजो से अवगत हुआ है, अमर शहीद केसरीचंद के साथ-साथ उत्तराखंड देहरादूंन के एक और स्वाधीनता संग्राम सेनानी दुर्गामल
को फांसी दिल्ली गेट स्थित मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के नजदीक निर्मित फांसी घर मे दी गई थी। उक्त स्थान पर फांसी पर चढे सभी शहीदों के नाम सुरक्षित दस्तावेजो मे उपलब्ध हैं।
वक्ताओ ने कहा, आज की युवा पीढ़ी को इस अमर शहीद के बलिदान से प्रेरणा लेकर देश की उन्नति में सहयोग देना चाहिए। इस कार्य मे आज उत्तराखंड के युवाओं को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।
वक्ताओ द्वारा देश की आजादी के लिए बलिदान देने वाले इस प्रेरणाश्रोत बलिदानी के नाम पर दिल्ली प्रवास मे सड़क व पार्क का नाम रखे जाने पर जौनसारी समाज की ओर से आभार व्यक्त करने के साथ-साथ मांग रखी गई, उत्तराखंड की स्थानीय बोली-भाषा की पाठ्य पुस्तकों मे उत्तराखंड के देश के लिए बलिदान हुए शहीदो के कृतित्व व व्यक्तित्व पर विषय होना चाहिए। पाठ्य पुस्तके होनी चाहिए। बलिदानियों द्वारा उपयोग मे लाई गई वस्तुओं व दस्तावेजो को संग्रहित कर निर्मित संग्रहालयो मे सजो कर रखा जाना चाहिए, जिससे आने वाली भविष्य की पीढ़ी ऐसे महान बलिदानियों से प्रेरणा लेकर देश प्रेम का जज्बा कायम रख सके, देश को तरक्की के पथ पर अग्रसर कर सके। वक्ताओ ने कहा, बलिदानियों के उक्त भाव दूर तक जाने पर ही देश प्रेम बढेगा, राज्य व देश स्मृद्ध होगा।
बीर बलिदानी के जीवन गाथा पर रची कविताओ के द्वारा भी अमर शहीद केसरीचंद के कृतित्व व व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया, श्रद्धासुमन अर्पित किए गए। जौनसारी खजान दत्त शर्मा द्वारा अमर शहीद केसरीचंद के जीवन पर प्रभावशाली कविता-
याद आवन्दी सबुकै…।
का वाचन कर श्रद्धासुमन अर्पित किए गए।
आयोजित जन्मोत्सव का समापन जौनसार बाबर ट्राईवल वेलफेयर सोसाइटी अध्यक्ष विद्या दत्त जोशी द्वारा सभी वक्ताओ व श्रोताओं का आभार व्यक्त करने व संस्था सदस्य शिव सिंह रावत का जन्मदिन मना कर किया गया। मंच संचालन कुंदन सिंह चौहान द्वारा बखूबी किया गया।