पर्यटन के सामने खुद को पुनर्स्थापित करने की चुनौती!

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विश्व पर्यटन दिवस

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला


हमारे देश में कई ऐसे राज्य हैं जिनकी कमाई का मुख्य आए पर्यटन उद्योग है. इसके साथ पर्यटन से ही लाखों लोगों को रोजगार भी मिला हुआ है. अगर हम देश में बात करें तो उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, गोवा, सिक्किम आदि ऐसे प्रदेश हैं जो पर्यटन उद्योग पर ही निर्भर माने जाते हैं.यूरोप के अधिकांश देशों में पर्यटन स्थल सैलानियों से फल फूल रहे हैं. वहीं भारत के पड़ोसी देश नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मालदीव्स के साथ थाईलैंड भी पूरे साल पर्यटकों से गुलजार रहता है. इन राज्यों में यह दिवस एक ‘त्योहार’ की तरह मनाया जाता है. साल 2020-21 में देश में कोरोना महामारी की वजह से पर्यटन उद्योग भी बुरी तरह प्रभावित रहा था. देश में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में खूबसूरत वादियों के साथ धार्मिक स्थल सैलानियों के साथ श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं. ‌इन दोनों राज्यों में पूरे साल पर्यटकों की आवाजाही रहती है. भारत एक ऐसा देश है जहां आपको खूबसूरत बीच देखने को मिलेंगे तो वहीं रेगिस्तान भी देखने को मिलेगा.यहां खूबसूरत गर्म पहाड़ हैं तो वहीं बर्फीली चादर ओढ़े आकर्षक माउंटेन हैं. यहां के पर्यटन स्थल घूमने के लिए दुनियाभर से कई पर्यटक आते हैं. भारतीय पर्यटन से लोगों को रोजगार भी मिलता है तो वहीं देश की जीडीपी में बढ़ोतरी भी होती है.इसके अलावा पर्यटन दिवस के जरिए देश विदेश तक भारत की ऐतिहासिकता, खूबसूरती, नेचुरल खूबसूरती का प्रचार प्रसार भी होता रहता है. कश्मीर से कन्याकुमारी तक कई ऐसे पर्यटक स्थल हैं जो यात्रियों को अपनी और आकर्षित करते हैं. यही वजह है कि पर्यटन दिवस के जरिए लोगों को जागरूक किया जाता है. विश्व पर्यटन दिवस की शुरुआत साल 1970 में विश्व पर्यटन संस्था द्वारा की गई थी. इसके बाद 27 सितंबर 1980 को पहली बार विश्व पर्यटन दिवस मनाया गया और तब से हर साल 27 सितंबर के दिन ही विश्व पर्यटन दिवस को मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य टूरिज्म के प्रति जागरूकता बढ़ाना है, ताकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक मूल्य प्रदान किए जा सकें. हर साल अलग-अलग थीम के साथ इस दिन को मनाया जाता है. इसके साथ पर्यटन क्षेत्र लाखों लोगों को देश में रोजगार भी दे रहा है. देश के तमाम विश्वविद्यालयों और संस्थानों में पर्यटन से संबंधित सर्टिफिकेट कोर्स, डिप्लोमा और डिग्री भी दिए जाते हैं उत्तराखंड एक छोटा सा पर्वतीय राज्य है, लम्बे जनसंघर्षों के बाद जिसकी स्थापना 9 नवम्बर 2000 को हुई थी. उत्तराखंड के निर्माण के समय इस बात पर विशेष ज़ोर दिया गया था कि उसे एक बड़े पर्यटन राज्य के रूप में विकसित किया जाएगा.राज्य की स्थापना के दो दशकों के भीतर सरकारों ने दो बार पर्यटन नीतियां तो बनाई हैं लेकिन बेतरतीब विकास और दिशाहीन नियोजन के चलते ज़मीन पर उनका कोई बड़ा असर देखने को नहीं मिलता. उल्टे अनेक सुन्दर जगहें अपना आकर्षण खो चुकी हैं.उत्तराखंड की पर्यटन नीति में पर्यटन का अर्थ यूँ बताया गया है – “पर्यटन से आधुनिक समय में सभी प्रकार के पर्यटन जैसे धार्मिक पर्यटन, सांस्कृतिक पर्यटन, तीर्थाटन, साहसिक पर्यटन, खेल पर्यटन, चिकित्सा पर्यटन, हेली पर्यटन, पारिस्थिकीय पर्यटन, फ़िल्म पर्यटन एवं वन्य जीवन पर्यटन आदि अभिप्रेत हैं.” पिथौरागढ़ ज़िले की ही ख़ूबसूरत दारमा और व्यांस घाटियों का दिया जा सकता है जहाँ तक हाल के वर्षों में सड़कें पहुंचा दी गई हैं. इससे वहां जाने वाले पर्यटकों की संख्या में वृद्धि तो हुई है लेकिन मूलभूत सरकारी सेवाओं का अब भी अभाव है.इन घाटियों के गाँवों को होमस्टे की योजनाओं से जोड़ा तो गया है लेकिन उन्हें आधुनिक बनाने और बेहतर सुविधाओं से लैस करने की तरफ़ किसी का ध्यान नहीं गया है. आदि कैलाश और मानसरोवर जैसी शताब्दियों पुरानी तीर्थयात्राएं इन घाटियों से होकर जाती रही हैं और उनके नियत पुराने रास्ते बने हुए थे. बेतरतीब सड़कों के निर्माण के चलते ये सभी पुराने रास्ते या तो नष्ट हो गए हैं या उनकी हालत देखते हुए उन पर चलने का साहस वही कर सकता है जिसे अपने प्राण प्यारे न हों. विकास नाम के दैत्य ने हिमालय की पसलियों में सेंध लगाकर उसे चीर डाला है जिसका परिणाम लगातार हो रहे भूस्खलनों और अन्य आपदाओं की सूरत में दिखाई देने लगा है. जिस हिमालय को नीति-निर्माताओं ने उत्तराखंड के पर्यटन की रीढ़ बताया था उसी की लगातार अनदेखी की जाती रही है. जिन प्राकृतिक संसाधनों को पर्यटकों को आकर्षित करने वाला कारक बताया जा रहा था उन्हीं का सबसे अनियंत्रित और क्रूर दोहन हुआ है.पर्यटन के माध्यम से स्थानीय जनों को रोज़गार उपलब्ध कराये जाने के दावों की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि आपको दूरस्थ दुर्गम जगहों में भी मैगी पॉइंट तो मिल जाते हैं यह बताने वाला कोई नहीं मिलता कि आगे का रास्ता खुला है या नहीं.नए पर्यटन-स्थलों की पहचान और उनके विकास का यह हाल है कि पहले से विकसित, नैनीताल-मसूरी जैसे अंग्रेज़ों के बनाए पर्यटन-स्थलों में लगातार पांच-सितारा महानगरीय सुविधाएं पहुँच रही हैं, जबकि मुख्य मार्ग से थोड़ा सा भी हट कर स्थित सुन्दरतम स्थान टेलीफ़ोन और इंटरनेट जैसी ज़रूरी सुविधाओं से भी महरूम हैं. 2001 में लागू की गई पहली पर्यटन नीति के सबसे प्रमुख उद्देश्य के रूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर का आधारभूत ढाँचा स्थापित करना और नए पर्यटक-स्थलों की पहचान करना बताया गया था जबकि 2018 की दूसरी पर्यटन नीति में उत्तराखंड की महान हिमालयी श्रृंखलाओं, अल्पाइन वनों और स्थानीय पर्यावरण को उत्तराखंड की सबसे बड़ी विशेषता बताते हुए उसे नज़दीकी स्थानों जैसे दिल्ली, चंडीगढ़, जयपुर इत्यादि की बड़े बाज़ारों के पर्यटकों के लिए सप्ताहांत बिताने की आदर्श जगह कहा गया. उत्तराखंड राज्य को बने इक्कीस साल होने को आये हैं इन 22 सालों में पर्यटन और पर्यटन के नाम पर न जाने कितनी सरकारें आई और गई. राज्य स्थापना से पहले ही पर्यटन को राज्य की अर्थव्यवस्था का आधार बना दिया गया था. राज्य सरकार के पास एक ऐसा आंकड़ा नहीं है जो यह बता सके कि राज्य में पर्यटन से कितने लोगों की आजीविका चल रही है.  राज्य की पहली पर्यटन नीति का भी हुआ। कई बार के संशोधनों के बाद 27 सितम्बर विश्व पर्यटन दिवस पर 2018 में राज्य ने नयी पर्यटन नीति की घोषणा की। इस योजना में उत्तराखंड में पर्यटन की परिभाषा के अंतर्गत धार्मिक पर्यटन, सांस्कृतिक पर्यटन, तीर्थाटन, साहसिक पर्यटन, खेल पर्यटन, चिकित्सा पर्यटन, हेली पर्यटन, पारिस्थितिकीय पर्यटन, फिल्म पर्यटन और वन्य जीव पर्यटन को शामिल किया गया। इस योजना के प्रस्ताव में बताया गया है कि 2006-07 से 2016-17 तक पर्यटन से राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में 50 फीसदी की हिस्सेदारी आयी। 32 पृष्ठों की इस भारी भरकम नीति में बातें तो बड़ी-बड़ी की गयी थीं, लेकिन इन्हें अमली जामा पहनने का काम नहीं हो सका। सबसे दुर्भाग्यजनक बात तो यह रही कि इस नीति में उत्तराखंड में पर्यटन के काम से जुड़े असली और जमीनी स्तर पर काम कर रहे लोगों (स्टेक होल्डर्स) को एकदम हाशिये पर रख दिया गया।
इस नीति में पहाड़ के दूरदराज के गांवों में रह कर ट्रैकिंग, कैंपिंग और अन्य साहसिक खेलों के जरिए रोजी-रोटी चला रहे लोगों, रिवर राफ्टिंग, कैनोइंग तथा अन्य जल क्रीड़ाओं से जुड़े स्वरोजगार कर रहे उद्यमियों, चंद्र सिंह गढ़वाली योजना के जरिए होम स्टे या रेस्टोरेंट के काम में लगे लोगों, स्थानीय ट्रैवल और ट्रैकिंग एजेंसियों के कर्ताधर्ताओं से न तो कोई राय इस नीति को बनाने से पहले ली गई और न ही इस नीति में उनके बारे में व्यावहारिक ढंग से संवेदनशीलता के साथ सोचा गया। क्योंकि नीति में बातें बहुत बड़ी-बड़ी कही गई थीं, इसलिए यह नीति भी बड़े-बड़े लोगों के इर्द-गिर्द ही केंद्रित रही। वैसे भी इस नीति के आने के बाद पहले प्राकृतिक आपदाओं और फिर कोरोना की दो लहरों के कारण उत्तराखंड में जमीनी स्तर पर जितना भी पर्यटन से जुड़ा कारोबार चल रहा था, वह बहुत बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। रही बात इस पर्यटन नीति की, तो यह पर्यटन विभाग के बड़े-बड़े अधिकारियों के दफ्तरों में और मंत्रियों तथा नेताओं के भाषणों तक ही सीमित रह गई है।
उत्तराखंड ने अन्य पहाड़ी राज्यों से भी पर्यटन के बारे में कुछ नहीं सीखा। जम्मू कश्मीर तथा लद्दाख में गाइडों एवं पर्यटन व्यवसाय से जुड़े अन्य लोगों के लिए बीमा की व्यवस्था है। वहां शासन पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों और उद्यमियों को ऋण और सब्सिडी की विशेष सुविधाएं देता है। हिमाचल प्रदेश में सांस्कृतिक पर्यटन और साहसिक पर्यटन से जुड़कर अपना रोजगार कर रहे लोगों के लिए अनेक सुविधाएं हैं। वहां पर्यटन व्यवसाय से जुड़े पंजीकृत उद्यमियों को भी सरकार अनेक तरह से प्रोत्साहन देती है और उनके प्रशिक्षण आदि की निरंतर व्यवस्था करती रहती है। उत्तराखंड राज्य, भारत के पहाड़ी राज्यों में से एक है। उत्तराखंड का लगभग 85% क्षेत्र पहाड़ी है। उत्तराखंड में कुल 13 जिले हैं।  अधिकांश जिले राज्य के पहाड़ी भागों को कवर करते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों के कारण उत्तराखंड पर्यटन को हर साल काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ये चुनौतियां हर साल स्थानीय लोगों को और उनकी आजीविका को प्रभावित करता है।पड़ोसी देश नेपाल में तो वहां की सरकार ने अपने पर्यटन व्यवसाय को इतना संरक्षण दिया है कि पर्यटन न सिर्फ नेपाल की अर्थव्यवस्था का सबसे प्रमुख आधार बन गया है, बल्कि नेपाल के अनेक दूरदराज के गांवों के लोग पर्यटन को मिल रहे सरकारी संरक्षण के कारण अपने गांव में रहकर ही बहुत अच्छे ढंग से अपना निर्वाह कर पा रहे हैं। नेपाल के ज्यादातर ट्रैकिंग और माउंटेनियरिंग के रास्तों में टी हाऊस जैसे खास तरह होटल बनाने या चलाने वालों को भी नेपाल सरकार अनेक तरह की सुविधाएं प्रदान करती है।उत्तराखंड में ऐसा कुछ भी नहीं होता। राज्य की पर्यटन नीति न तो अपने जमीनी आधार पर केंद्रित है पर न ही पर्यटन से जुड़े राज्य के मूल निवासियों के आर्थिक और तकनीकी विकास के बारे में इसमें कुछ सोचा गया है। राज्य में पर्यटन के क्षेत्र में स्थानीय लोगों की जो भी छिटपुट सफलताएं तथा उपलब्धियां हैं, वह सिर्फ उनके अपने उद्यम, लगन और समर्पण की वजह से ही संभव हो सकी हैं। राज्य की नीति की सफलता सिर्फ यही है कि इसने राज्य के पर्यटन उद्योग की लगाम धीरे-धीरे राज्य से बाहर के लोगों के हाथों में सौंपनी शुरू कर दी है। साहसिक खेलों और पर्वतारोहण आदि से जुड़ी तमाम गतिविधियों की बागडोर अधिकतर राज्य से बाहर की बड़ी-बड़ी एजेंसियों के हाथों में आ चुकी है। धार्मिक पर्यटन का भी बड़ा हिस्सा बाहरी ट्रेवल एजेंसियों के हाथ में है और हेली पर्यटन आदि के बढ़ते जाने के कारण यात्रा मार्ग में पर्यटकों के जरिए रोजी-रोटी चला रहे स्थानीय लोगों पर इसका जबरदस्त दुष्प्रभाव पड़ा है। रही सही कसर अदालतों के अलग-अलग समय पर आए आदेशों ने पूरी कर दी, जिसमें स्थानीय लोगों की आवाज को बराबर अनसुना किया जाता रहा है। रैणी गांव को लेकर उत्तराखंड हाई कोर्ट का ताजा फैसला इसका ज्वलंत उदाहरण है।नई पर्यटन नीति की पहली और सबसे बड़ी उपलब्धि जून 2019 में औली के शांत और स्वच्छ वातावरण में दक्षिण अफ्रीका के कुख्यात गुप्ता बंधुओं के परिवार की 200 करोड़ की शादियों के रूप में सामने आई, जिसने औली क्षेत्र में कचरे का अंबार लगा दिया। साफ दिखता है कि पर्यटन के प्रति हमारी दृष्टि कैसी है और यह किसके पक्ष में खड़ी है। लोगों के जंगलों के प्रति सोचने के रवैये में बदलाव आया है. मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में भी लोगों में पहले की तुलना में अब उतना रोष नहीं देखा जाता. हमारी दृष्टि कैसी कहते हैं कि अब पुनर्विचार की जरूरत है. पर्यटन क्षेत्र न केवल किसी देश के विकास में योगदान देता है, बल्कि स्थानीय लोगों और पर्यटकों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को भी बढ़ावा देता है. यह विभिन्न क्षेत्रों में हजारों रोजगार सृजित करने में मदद करता है और ढांचागत विकास को भी प्रोत्साहित करता है. बेशक पर्यटन उद्योग फिर से पनपने को तैयार है, लेकिन इस मौके पर हमें यह देखना है कि क्या हमारा यह उद्योग वाकई अपने सभी पहलुओं में लोगों को हमारे ग्रह को प्राथमिकता पर रख भी पा रहा है या नही. और क्या हम पूरी दुनिया के लिए इस उद्योग को एक समावेशी और साझा क्षेत्र के रूप में विकसित करने पर जोर दे रहे हैं या नहीं. इसके लिए जरूरी बदलाव करने का यह एक अच्छा मौका है. उत्तराखंड का पहाड़ी राज्य होना यहां के पर्यटन को बढ़ावा देता है तो यही बात यहां के पर्यटन को चुनौती भी देता है। उत्तराखंड के लगभग सारे पर्यटक स्थल पहाड़ी क्षेत्रों में ही हैं और यहां पहुंचने के लिए सड़कों से पहुंचना काफी खतरनाक भी है। पहाड़ों में भूस्खलन, सड़क का टूटना, अच्छी सड़क का न होना एक सामान्य सी बात है। खतरनाक रास्तों पर इन सब घटनाओं का होना एक सामान्य सी बात है और मरम्मत होने में समय लगना भी सामान्य बात है। सड़कों पर जितना भी विकास का काम हो रहा है वो कहीं न कहीं पहाड़ों को और ज्यादा कमजोर कर रहा है जिससे आये दिन सड़कों का टूटना, भूस्खलन होना होता रहता है। 
लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत में हैं।