मुस्लिम समुदाय ने रानीखेत में श्रद्धालुओं को कराया सद्भावन जलपान, भाईचारे की अतीत से बनी तस्वीर को और उजला किया
रानीखेत:देश में मौजूदा वक्त में बढ़ते धार्मिक मनोमालिन्य के बीच रानीखेत में आज एकता एवं भाईचारे की अनूठी मिसाल दिखी,यहां मुस्लिम समुदाय के लोगों ने मां नंदा-सुंनदा मूर्ति के लिए कदली वृक्ष ला रहे श्रद्धालुओं का स्वागत सद्भावन जलपान से किया। कौमी एकता की ये तस्वीर स्वार्थ की सियासत में तर आज के सियासतदानों को एक बड़ा संदेश देने के साथ ही रानीखेत के परस्पर भाईचारे के गौरवमयी अतीत को भी पुनः उजला बना गई।
उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद देश के बंटवारे के वक्त हुए साम्प्रदायिक दंगे की आग की चिंगारियां सानी उडयार कांड के बाद रानीखेत तक पहुंची थी ,तब यहां के जागरूक हिंदूओं ने यहां के मुस्लिम समुदाय की रक्षा की और उनके घरों की पहरेदारी में छातियां जोड़कर खड़े हो गए थे ऐसे में आतातायियों को बैरंग लौटना पड़ा था हिंदू -मुस्लिम भाईचारे का गौरवशाली इतिहास और उसकी भीनी सुवास आज भी कायम है। जिसे मुस्लिम समाज के जागरूक युवकों की पहल और सशक्त बना रही है।
बता दें कि तीन वर्ष पूर्व भी इस तरह का कार्यक्रम मुस्लिम समुदाय ने आयोजित किया था जिसे अविछिन्न रूप से जारी रखने का इरादा भी पूरी तरह बुलंद था लेकिन कोरोना काल के चलते दो वर्षो तक इस बेमिसाल आयोजन में व्यवधान आ गया। दिलचस्प बात यह रही कि इस आयोजन में किसी कमेटी या संस्था का न बैनर था न ही पहल।बस..एक सिरे से पहल की शुरुआत हुई और मुस्लिम समुदाय में चौतरफा सहयोग और सद्भाव के हाथ बढ़ते चले गए। कौमी एकता का भाव लिए इस कार्यक्रम की सभी ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की ,न केवल श्रद्धालुओं ने अपितु राह चलते राहगीरों ने भी।
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यूं तो श्रद्धालुओं की खातिरदारी में सबकुछ था पानी कोल्ड ड्रिंक,फल, मिठाई,बिस्कुट समोसे ….।लेकिन उससे भी बढ़कर जो स्वाद था वो उस अपनेपन में जो श्रद्धालुओं की व्यग्र प्रतीक्षा में बार-बार यात्रा कहां पर पहुंची इसकी जानकारी ले रहे थे। स्वाद उन जमावड़ा लगाए मुस्लिम समुदाय के हर वय के व्यक्ति में था जो दिलों में प्यार के रंगों को और अधिक गाढ़ा करने की कोशिश में उस छोटे से पार्क में टेबल्स सजा कर बैठे थे। ईश्वर करें दिलों के रंग कभी मटमैले न पड़ें।
शायर सरशार सैलानी की यह बात हर हाल में गांठ बांधे रखनी होगी, ‘चमन में इख्तिलात-ए-रंगो-बू से बात बनती है, हमीं हम हैं तो क्या हम हैं, तुम्हीं तुम हो तो क्या तुम हो.’