मिश्रा कमेटी की अनदेखी करने का नतीजा है जोशीमठ की तबाही (भाग-२)

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पिछले लेख से आगे ————दिनेश तिवारी एडवोकेट

केंद्रीय गृह मंत्रालय के राष्ट्रीय आपदा संस्थान ने , वर्ष २०१३ में आपदा पर तैयार की गयी अध्यन रिपोर्ट में योजनाकारों और योजना लागू करने वाली संस्थाओं से कहा था कि वह केदारनाथ महाविनाश से सीख लें . इसी तरह १६-१७ जून २०१३ की केदारनाथ आपदा के कारणों का पता लगाने के लिए राष्ट्रीय आपदा संस्थान की टीमों ने आपदा प्रभावित इलाक़ों का गहन सर्वेक्षण और अध्यन करने के बाद तीन खंडों में रिपोर्ट तैयार की थी . इस रिपोर्ट में १९ सिफ़ारिशों के साथ यह स्वीकार किया गया था कि जल विद्युत परियोजनाओं के अलावा तमाम बड़ी परियोजनाएँ हिमालयी क्षेत्र में एक ओर जहाँ पर्यावरणीय समस्याओं को पैदा कर रही हैं वहीं बाढ़ , भूस्खलन , भूधँसाव , जल स्रोतों के सूखने , शिफ़्ट होने और वन्य जीवों व मानवीय जनजीवन को भी भारी नुक़सान पहुँचाने का कारण बन रही हैं . आपदाओं के दंश को झेल रहे पहाड़ की बेदना को समझने के लिए वाडिया इंस्टिट्यूट आफ हिमालयन जीयोलाजी( डब्लू.आइ एच ) के वैज्ञानिकों के इस अध्ययन को पढ़ना व समझना भी हितकर है कि ‘ पहाड़ों की धारक क्षमता की अनदेखी कर किए जा रहे नियम विरूद्ध निर्माण कार्यों ने भूस्खलन और भू धँसाव की घटनाओं में भारी बृद्धि कर दी है ‘.
इस हिमालयी राज्य में भवन निर्माण के लिए अलग से कोई मानक नहीं हैं . कुछ हैं भी तो बहुत अस्पष्ट हैं और उनका कोई पालन करता भी नहीं है . यही कारण है कि पहाड़ी ढलानों पर बनने वाले भवनों के निर्माण में मैदानों के लिए बने मानकों का ही इस्तेमाल हो रहा है . पहाड़ों के बड़े हिल स्टेशन और प्रमुख शहर पहाड़ी ढालों पर ही बने और बसाए गए हैं . यह सही है कि पिछले तीन चार दशकों से जोशीमठ , नैनीताल , मसूरी , धनोलटी , चकराता , अलमोडा , रानीखेत , जैसे अनेक पहाड़ी शहरों में बहुत तेज़ी के साथ शहरीकरण और स्वाभाविक तौर पर जनसंख्या में भारी बृद्धि दर्ज की गयी है .पहाड़ों को “ पर्यटन प्रदेश “ के रूप में विकसित करने की नीति ने जोशीमठ जैसे पौराणिक क़स्बे को आधुनिक पर्यटन के तीर्थ के रूप में बदल दिया है. ज़ाहिर है कि बद्रीनाथ , औली , हेमकुंड साहिब , फूलों की घाटी और हिमालय दर्शन को आने वाले यात्रियों , पर्यटकों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए यहाँ बड़े होटल , रिज़ॉर्ट का निर्माण हुआ है . पर्यटकों के अलावा अन्य तरह से बढ़ती जनसंख्या के कारण इस शहर पर अतिरिक्त दबाव पड़ा है . केवल यहीं नहीं केदार खंड की अत्यधिक संवेदनशील भूमि पर हुए अवैज्ञानिक निर्माण , और विशाल परियोजनाओं ने इस पूरे इलाक़े को विनाश की ओर धकेल दिया है .केन्द्रीय सड़क और राजमार्ग मंत्रालय का २०१२ का वह सरकुलर भी पहाड़ों में भूस्खलन , भूधँसाव को आमंत्रण दे रहा है जिसके अनुसार संवेदनशील पहाड़ों में सड़कों की चौड़ाई का मानक भी मैदानी क्षेत्रों की तरह बना दिया गया है . इसके अनुसार पहाड़ों के लिए मान्य ५.५ या ६ मीटर के स्थान पर ८ या ८.५ मीटर कुल चौड़ाई १२ मीटर की सड़क के निर्माण का प्रावधान किया गया है . हालाँकि अनेक संगठनों , पर्यावरणविदों , भू वैज्ञानिकों के प्रबल विरोध के बाद सड़क मंत्रालय ने २३ मार्च २०१८ को नया सरकुलर जारी कर पहाड़ों के लिए सड़क की चौड़ाई पाँच से सात मीटर कर दी है .
अब इस तथ्य से सभी वाक़िफ़ हो चुके हैं कि अतीत में भी अलकनंदा के क़हर ने जोशीमठ और उसके आसपास कई जगहों पर तांडव मचाया और उग्र बाढ़ के द्वारा यह संकेत दिया कि उसके तटों और क़ुदरती स्वरूप के साथ छेड़छाड न की जाय तो ख़ैरियत रहेगी . यह अप्रैल , मई १९७६ की बात है , तब तत्कालीन यूपी सरकार ने उस समय के गढ़वाल मंडल के आयुक्त महेश चंद्र मिश्र की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया था जिसका काम इस इलाक़े का गहन सर्वेक्षण , अध्ययन कर इस बात का पता लगाना था कि इस क्षेत्र में मकानों में पड़ी दरारों , भूधँसाव , और भूस्खलन का वास्तविक कारण क्या है ? लोक निर्माण विभाग , सिंचाई विभाग , रुड़की इंजिनीयरिंग कालेज जो कि अब आइआइटी हो गया है , के अलावा कमेटी में शामिल भूविज्ञानियों और स्थानीय प्रबुद्ध नागरिकों ने “ मिश्रा कमेटी “ के नाम से जो रिपोर्ट यूपी सरकार को सौंपी वह न केवल उस समय महत्व की थी बल्कि आज भी महत्वपूर्ण है .मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट में इस बात का ख़ुलासा हुआ कि जोशीमठ कुँवारीपास के समीप में हुए भूस्खलन के कारण आए भारी मलवे के ढेर पर बसा हुआ है . और अत्यधिक संवेदनशील है . यह संवेदनशील इलाक़ा १० किमी लम्बा तीन किमी चौड़ा और तीन सौ मीटर ऊँचा है . तब कमेटी ने माना था कि इस नाज़ुक क्षेत्र में रिहायशी इलाक़ों में पानी की निकासी की ब्यवस्था न होना और अनियंत्रित निर्माण कार्य भविष्य के लिए ख़तरे की घंटी हैं और तत्कालीन यूपी सरकार को सुझाव दिए थे कि वर्षा और घरों से निकलने वाले पानी की निकासी की उचित प्रबंध हो , अलकनंदा नदी से हो रहे कटाव की रोकथाम के लिए बाढ़ सुरक्षा के इंतज़ाम हों और अनियंत्रित निर्माण कार्यों पर नियंत्रण की ब्यवस्था हो और बड़े प्रोजेक्ट पूरी तरह प्रतिवंधित किए जाएँ . लेकिन यह दुखद है कि मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट पर कभी भी किसी ने भी अमल नहीं किया . और नतीजा जोशीमठ की तबाही है .
—— लेख जारी है . ———— लेखक सोशल एक्टिविस्ट हैं