किलमोड़ा समाप्ति के कगार पर सिर्फ व्यवसायिक उपयोग है, संरक्षण की कोई योजना नहीं

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल के पारंपरिक खानपान में जितनी विविधता एवं विशिष्टता है, उतनी ही यहां के फल.फूलों में भी। खासकर जंगली फलों का तो यहां समृद्ध संसार है। यह फल कभी मुसाफिरों और चरवाहों की क्षुधा शांत किया करते थे, बेरवेरीज एरिस्टाटा को पहाड़ में किलमोड़ा के नाम से जाना जाता है। इसकी करीब 450 प्रजातियां दुनियाभर में पाई जाती हैं। भारत, नेपाल, भूटान और दक्षिण.पश्चिम चीन सहित अमेरिका में भी इसकी प्रजातियां हैं। किलमोड़ा का पूरा पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है। इसकी जड़, तना, पत्ती, फूल और फलों से विभिन्न बीमारियों में उपयोग आने वाली दवाएं बनाई जाती हैं। भारत, नेपाल और भूटान में किलमोड़ा की अनेक प्रजातियां पाई जाती हैं। किलमोड़ा का पूरा पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है।समुद्रतल से 1200 से 2500 मीटर की ऊंचाई पर उगने वाले किनगौड़ का वानस्पतिक नाम (बरबरीस एरिसटाटा) है। इस पोधे की जड़ तना और पत्तियां औषधीय गुणों से भरपूर हैं इस पोधे की जड़ शूगर की रामबाण औषधी है शाम को इसकी जड़ को पानी में भिगोकर सुबह को इसको पीने से शूगर की बिमारी ठीक हो जाती है।इस पौधै का फल विटामिन सी से भरपूर होता है इसके फलों में मौजूद विटामीन सी त्वचा रोगों के लिए भी फायदेमंद है। और यूरनरी समस्याओं से भी निजात दिलाता है।औषधीय गुणों की पहचान न होने और बाजार न मिलने के कारण स्थानीय लोग इसको खेत में बाड़ के रूप में उपयोग करतें हैं। उत्तराखंड के पहाड़ो में एक कंटेनुमा झाड़ी पर उगने वाला , नीला लाल फल ,जिसको  स्थानीय भाषा में किलमोड़ा या किनगोड़ा कहते हैं ,इसे हिंदी में दारुहल्दी कहते है। और संस्कृत में दारुहरिद्रा कहते हैं।  अप्रेल से जून के मध्य होने वाले इस दिव्य फल का आनंद सभी पहाड़ वाली बड़े चाव से लेते है। किनगोड़ा की लगभग 450 प्रजातियां पुरे संसार में पाई जाती हैं। यह उत्तराखंड के 1400 से 2000 मीटर तक की उचाई पर मिलता है। इसका पौधा लगभग 2  से 3 मीटर तक ऊँचा होता है। इसके फल नील वर्ण के और खट्टे मीठे स्वाद वाले होते हैंकिलमोड़ा एक ऐसा पौधा है , जिसके जड़ तना , फल तीनो काम आतें ,हैं।  किल्मोड़ा में लगभग 6 .2 प्रतिशत प्रोटीन ,32 .91 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेड ,30 .47 mg  पॉलीफेनोल , 7 .9 3 mg  संघनित टेनिन ,31 .96 mg एस्कार्बिक एसिड , 4 .53 ग्राम कैरोटीन ,लाइकोपीन और माइक्रोग्राम 10 .62 mg  आदि पाए जाते हैं किलमोड़ा का पूरा पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है। इसकी जड़, तना, पत्ती, फूल और फलों से विभिन्न बीमारियों में उपयोग आने वाली दवाएं बनाई जाती हैं। मुख्य रूप से इस पौधे में एंटी डायबिटिक, एंटी ट्यूमर, एंटी इंफ्लेमेटरी, एंटी बैक्टीरियल, एंटी वायरल तत्व पाए जाते हैं। मधुमेह के इलाज में इसका सबसे अधिक उपयोग होता है। पहाड़ में पायी जाने वाली कंटीली झाड़ी किनगोड़ आमतौर पर खेतों की बाड़ के लिए प्रयोग होती है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि यह औषधीय गुणों से भी भरपूर है। इसका व्यावसायिक उपयोग किया जाए तो यह आय का जरिया भी बन सकता है। किनगोड़ का पेड़ फल से लेकर जड़ तक अपने में कई औषधीय गुणों को समेटे हुए है। शुगर जैसी बीमारी का तो यह रामबाण इलाज है। अलख स्वायत्त सहकारिता नामक संस्था ने मई में धारी से तीन किमी दूरी पर स्थित मझेड़ा गांव में कार्यालय खोल इस काम को शुरू किया। सहकारिता के मुख्य कार्यकारी अधिकारी पंकज बिष्ट ने बताया कि किलमोड़ा के फल बीनने के बाद अभी तक 80 लीटर जूस बनाया जा चुका है। मझेड़ा, पोखराड़, गजार, चखुटा, बुराशी, पोल, धानाचूली, सुंदरखाल, बना व तुनकिया गांव की महिलाएं रोजमर्रा के काम से फुर्सत मिलने पर परिवार समेत फल बीनकर लाती है। 100 रुपये प्रति किलो के हिसाब से उन्हें पैसे दिए जाते हैं। शुगर फ्री जूस 399 व दूसरा 250 प्रति लीटर के हिसाब से मार्केट में बिक रहा है।उत्तराखंड के पहाड़ी भागों में संरक्षण के आभाव और अत्यधिक दोहन व जानकारी के अभाव में यह औषधीय पौधा धीरे धीरे विलुप्ति की ओर बढ़ रहा है। इसका संरक्षण और उत्पादन के लिए ठोस निति बनाने की आवश्यकता है। यह ऐसा पौधा जो हमारे पहाड़ी राज्य को आर्थिकी व् स्वरोजगार में मदद कर सकता है। केन्द्रीय व प्रांतीय वन अधिनियम व वन जन्तु रक्षा अधिनियम के तहत वन विभाग व अन्य संबधित विभागों को इसके सरंक्षण व दोहन के लिए विशेष योजना बनानी होगी। उनका सुझाव है कि यह वनस्पति पर्यावरण सुरक्षा की भी गारंटी देता है, साथ ही स्वरोजगार तथा औषधीय रूप से भी किनगोड़ का बेजा इस्तेमाल किया जा सकता है। बशर्ते यह सरंक्षित हो।उल्लेखनीय हो कि दारुहल्दी (किनगोड़) को उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन के लिए बहुतायत में उपयोग में लाया जा सकता है। इसके लिए उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन की योजना का होना जरूरी है। पहाड़ का काश्तकार किलमोड़ा की झाडिय़ों को नष्ट करता है। जबकि इसके इस्तेमाल से दो फायदे होंगे। खेत के चारों तरफ बाउंड्री वॉल के तौर पर लगाकर जंगली जानवरों के नुकसान से बचा जा सकता है। साथ ही फल बेचकर पैसे मिलेंगे। इसका संरक्षण और उत्पादन के लिए ठोस निति बनाने की आवश्यकता है। यह ऐसा पौधा जो हमारे पहाड़ी राज्य को आर्थिकी व् स्वरोजगार में मदद कर सकता है। लेखक द्वारा शोध के अनुसार वैज्ञानिक शोध पत्र वर्ष,2008, 2012 जर्नल पत्रिका में प्रकाशित हुआ हैं