*नवांकुर* में आज पढे़ं सोनिया सिंह की कविता

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केन तुम बहती रहना

केन के पुल से
गुजरते हुए
राहगीरों का ध्यान
खींच लेती है
बरबस ही
अपनी तरफ
इसकी शान्त- स्निग्ध
जल – राशि …

इसके एक ओर
आसमान में उड़ती
पंछियों- सी
यदा- कदा तैरती नावें
और
दूसरी तरफ
बाल – सरिता- सी
अठखेलियाँ करती हुई
इसकी कृशांगी धाराएँ

मोह लेती हैं मन
प्रकृति- प्रेमियों का …

इसके एक कूल से
सटा हुआ
सीना ताने खड़ा है
भूरागढ़ का किला
समेटे अपने अन्दर
गौरवशाली इतिहास
और
बुंदेलखंडी आन- बान
और शान …

एक अनूठी
स्वर्णिम आभा से दमकती
इसकी बालुका
अनायास ही
खींच लेती है
कदम
राहगीरों के

और

मिट्टी के ढलानों को
पार करते हुए
बुला लेती है
अपनी
शीतल छाँव में …

इस तरह
दिन-भर के
जीवन- संघर्ष से
दग्ध हृदय
तृप्त हो उठते हैं
इसकी ठंडी रेत पर …

अनेक नव- प्रेमियों की
क्षण- भंगुर कसमों
और
वायदों की गवाही
अपने सीने में समेटे
सतत प्रवहमान है
तो
साक्षी भी है
यह
कुछ ऐसी प्रेम- गाथाओं की
जिन्होंने हारकर
इसकी गोद में
डुबो दीं
अपनी
सभी पावन भावनाएँ
और हसरतें …

रात के अँधेरे में
इसके ऊपर से गुजरती
रेलगाड़ी की गड़गड़ाहट
शीतल बयार के बीच
घोल देती है
समूचे वातावरण में
एक
मधुर स्वर- लहरी…..

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सोनिया सिंह एम ए इतिहास

नेट,पीएच.डी शोधार्थी

बांदा(उप्र)