नैनीताल की यादों में भारत रत्न वाजपेयी *आज पुण्यतिथि पर विशेष*

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी और श्रीमती कृष्णा देवी के घर जन्मे श्री वाजपेयी जी के पास चार दशक से अधिक समय का संसदीय अनुभव था। वे 1957 से संसद सदस्य रहे हैं। वे 5वीं, 6वीं, 7वीं लोकसभा और फिर उसके बाद 10वीं, 11वीं, 12वीं और 13वीं लोकसभा में चुनाव जीतकर पहुंचे। इसके अलावा 1962 और 1986 में दो बार वे राज्यसभा के सदस्य भी रहे। वर्ष 2004 में वे पांचवी बार लगातार लखनऊ से चुनाव जीतकर लोक सभा पहुंचे।वाजपेयी जी इकलौते नेता हैं जिन्हें चार अलग-अलग राज्यों (उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश और दिल्ली) से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचने का गौरव हासिल है। एक प्रधानमंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल इतना गौरवशाली रहा कि एक दशक के बाद भी उस कार्यकाल को न सिर्फ याद किया जाता है, बल्कि उस पर अमल भी किया जाता है। इसमें पोखरण परमाणु परीक्षण, आर्थिक नीतियों में दूरदर्शिता आदि शामिल हैं। आधारभूत संरचना के विकास की बड़ी योजनाएं जैसे राष्ट्रीय राजमार्ग और स्वर्णिम चतुर्भुज योजनाएं भी इनमें शामिल हैं। बहुत ही कम ऐसे प्रधानमंत्री हुए जिन्होंने समाज पर इतना सकारात्मक प्रभाव छोड़ा।अटल जी ने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (अब लक्ष्मीबाई कॉलेज) से स्नातक किया। इसके बाद उन्होंने कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीतिशास्त्र में परास्नाएतक की डिग्री हासिल की। शिक्षा के दौरान कई साहित्यिक, कलात्मक और वैज्ञानिक उपलब्धियां उनके नाम रहीं। उन्होंने राष्ट्रधर्म (मासिक पत्रिका), पाञ्चजन्य (हिंदी साप्ताहिक) के अलावा दैनिक अखबारों जैसे स्वदेश और वीर अर्जुन का संपादन किया। इसके अलावा भी उनकी बहुत सी किताबें प्रकाशित हुईं जिनमें मेरी संसदीय यात्रा-चार भाग में, मेरी इक्यावन कविताएं, संकल्प काल, शक्ति से शांति, फोर डीकेड्स इन पार्लियामेंट 1957-95 (स्पीचेज इन थ्री वॉल्यूम), मृत्यु या हत्याध, अमर बलिदान, कैदी कविराज की कुंडलियां (इमरजेंसी के दौरान जेल में लिखी गई कविताओं का संकलन), न्यू डाइमेंसंस ऑफ इंडियाज फॉरेन पॉलिसी आदि प्रमुख हैं।श्री वाजपेयी ने बहुत सी सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी हिस्सा लिया। वे 1961 से राष्ट्रीय एकता परिषद के सदस्य रहे हैं। ऐसी ही कुछ अन्य जगहें जहां वे जुड़े रहे-अध्यक्ष, ऑल इंडिया स्टेशन मास्टर्स एंड असिस्टेंट स्टेशन मास्टर्स एसोसिएशन 1965-70पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मारक समिति 1968-84दीनदयाल धाम, फराह, मथुरा, उत्तर प्रदेशजन्मभूमि स्मारक समिति, 1969श्री वाजपेयी 1951 में जनसंघ के संस्थायपक सदस्य और फिर 1968-1973 में भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष और 1955-1977 तक जनसंघ संसदीय पार्टी के नेता रहे। वह 1977 से 1980 तक जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य के रूप में और 1980 से 1986 तक भाजपा के अध्यक्ष रहे। साथ ही 1980-1984, 1986, 1993-1996 में वे भाजपा संसदीय दल के नेता रहे। ग्यारहवीं लोक सभा के दौरान वह नेता विपक्ष के पद पर रहे। इससे पहले मोरार जी देसाई की सरकार में उन्होंने 24 मार्च 1977 से 28 जुलाई 1979 तक विदेश मंत्री का पदभार भी संभाला।श्री वाजपेयी के 1998-99 के प्रधानमंत्री के कार्यकाल को ”दृढ़निश्चकय के एक साल” के रूप में जाना जाता है। इसी दौरान 1998 के मई महीने में भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया था जिन्होंने परमाणु परीक्षण को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। फरवरी 1999 में पाकिस्तान बस यात्रा ने उपमहाद्वीप की परेशानियों को सुलझाने के लिए एक नए दौर का सूत्रपात किया। इसे चहुंओर प्रशंसा मिली। इस मामले में भारत की ईमानदार कोशिश ने वैश्विक समुदाय में अच्छा प्रभाव छोड़ा। बाद में जब मित्रता का यह रूप धोखे के रूप में कारगिल के तौर पर परिलक्षित हुआ तब भी श्री वाजपेयी जी ने विषम परिस्थितियों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया और घुसपैठियों को बाहर खदेड़ने में सफलता हासिल की।श्री वाजपेयी जी को राष्ट्र के प्रति उनके सेवाओं के मद्देनजर वर्ष 1992 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उन्हें लोकमान्य तिलक पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ संसद सदस्य आदि पुरस्कार से नवाजा गया। इससे पहले 1993 में कानपुर विश्वदविद्यालय ने मानद डॉक्ट्रेट की उपाधि से नवाजा था। वर्ष 2014 में उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा की गयी और मार्च 2015 में उन्हें भारत रत्न से प्रदान किया गया। उन्हें 2015 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ की उपाधि से अलंकृत किया गया। वाजपेयी देश के तीन बार प्रधानमंत्री रहे। वह पहली बार 1996 में 13 दिनों के लिए, दूसरी बार 1998 में 13 महीनों के लिए पीएम बने। 1999 में उन्होंने पीएम के रूप में पांच वर्षों का कार्यकाल पूरा किया। वाजपेयी ने लालकृष्ण आडवाणी के साथ 1980 में भारतीय जनता पार्टी की नींव रखी। इसके बाद एक राजनीतिक पार्टी के रूप में भाजपा की यात्रा शुरू हुई। भाजपा को खड़ा करने में वाजपेयी और आडवाणी की सबसे ज्यादा योगदान रहा। अटल बिहारी वाजपेयी अपनी विचारधारा एवं सिद्धांतों के लिए जाने गए। उन्होंने सत्ता के लिए कभी समझौता नहीं किया। वाजपेयी प्रधानमंत्री के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा करने वाले पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री रहे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का सरोवर नगरी से विशेष लगाव था. वैसे तो अटल जी कई बार नैनीताल समेत आसपास के क्षेत्रों में आते रहते थे. लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद 2002 में वो नैनीताल पहुंचे थे. दरअसल 2002 में कच्छ में भूकंप आया था, जिसमें हजारों लोगों की मौत हो गई थी. जिससे वाजपेयी को काफी दुख हुआ और वो मन की शांति के लिए नैनीताल पहुंचे. साथ ही भूकंप में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए उस साल होली ना मनाने का भी फैसला किया था.वाजपेयी ने नैनीताल समेत आसपास के कई क्षेत्रों का भ्रमण किया, जहां उन्होंने नैनीताल की बदहाल पड़ी झीलों को देखकर करीब 200 करोड़ रुपए का बजट दिया था. जिससे झील संरक्षण का काम शुरू किया गया. जिसके तहत नैनीझील को ऑक्सीजन देने का काम किया जा रहा है. इसी वजह से आज भी झील का अस्तित्व कायम है. अटल बिहारी वाजपेयी नैनीताल समेत कई स्थानों घुमने गए. जिसके लिए होटल मालिक ने उनके लिए एक जिप्सी का इंतजाम किया था. अटल जी के वापस जाने के बाद होटल मालिक महीप भट्ट ने उस गाड़ी को सुरक्षित होटल में खड़ा कर दिया और आज भी वो गाड़ी उसी हाल में होटल परिसर में खड़ी है. जिसे यहां आने वाले पर्यटकों को दिखाया जाता है. उत्तराखंड राज्य के निर्माण को लेकर लंबा आंदोलन चला था. 42 लोग अलग राज्य के लिए शहीद हो चुके थे. 1996 में अपने देहरादून दौरे के दौरान अटल जी ने राज्य आंदोलनकारियों की मांग पर विचार करने का भरोसा दिया था. वाजपेयी ने इस भरोसे को कायम भी रखा और उनके प्रधानमंत्रित्वकाल में ही उत्तराखंड बना. आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिवस है. राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने अटल जी को श्रद्धांजलि दी है. अटल जी का यूं तो उत्तराखंड से गहरा नाता रहा है, लेकिन उत्तराखंड में भी नैनीताल से उनका खास लगाव रहा है. साल 1999 में एक वोट से अपनी सरकार गंवाने वाले वाजपेयी का संसद में दिया गया भाषण आज भी याद किया जाता है। पीएम पद से इस्तीफा देने से पहले उन्होंने संसद में भाषण दिया। भाजपा के इस दिवंगत नेता का यह भाषण आज भी याद किया जाता है। पीएम पद से इस्तीफा देने से पहले उन्होंने संसद में भाषण दिया। भाजपा के इस दिवंगत नेता का यह भाषण आज भी याद किया जाता है। उन्होंने कहा था, ‘सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएंगी और जाएंगी। पार्टियां बनेंगी-बिगड़ेंगी, मगर ये देश रहना चाहिए, देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए।’ सच पूछिए तो अटल बिहारी वाजपेयी का जाना हमारे लिए ऐसा है जैसे परिवार का कोई सदस्य चला गया। मन बहुत भारी है, उनके बारे में कोई शब्द नहीं निकल रहे। जब से यह खबर सुनी उनकी तस्वीर आंखों में घूम रही है। हम बार-बार घर में उस जगह को देखते हैं जहां अटल बिहारी वाजपेयी आकर विश्राम करते थे, बैठा करते थे और बच्चों के साथ खेला करते थे। अटल के निधन से राजनीति के एक युग का अंत हो गया। अपने राजनीतिक जीवन में वह पांच बार हल्द्वानी आए तो उनका ठिकाना मेरा घर ही हुआ करता था, हम उन्हें अपने परिवार का सदस्य मानते थे।अटल के बारे में यह अल्फाज कहते हुए हैं शहर के प्रमुख व्यवसायी और जनसंघ और आरएसएस से जुड़े बुजुर्ग वेद प्रकाश अग्रवाल स्मृतियों में खो जाते हैं। आवाज भारी होने लगती है और गला रुंध जाता है। उन्होंने बताया कि अटल जब उनके घर आया करते तो बच्चों से खूब प्यार करते। परिवार के बड़े सदस्यो को राजनीति के किस्से सुनाते तो बच्चों को अपनी कविताएं सुनाकर खुश करते। वेद प्रकाश आपातकाल और अटल से जुड़ी यादों को आज भी अपनी स्मृतियों में सहेज कर रखे हुए हैं। आरएसएस, जनसंघ और भाजपा से जुड़ा शायद ही कोई बड़ा नेता हो जो अग्रवाल के भोलानाथ गाडर्न स्थित घर पर न आया हो। 25 जून सन 1975 को देश में आपातकाल लगा था और इसके बाद तीन जुलाई 1975 को आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया गया था। जिसकी यादें आज भी वेदप्रकाश अग्रवाल के दिलो दिमाग में ताजा हैं। रामपुर रोड स्थित अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान में अग्रवाल बताते हैं कि अटल जब अल्मोड़ा आए थे तो रात को दो बजे हल्द्वानी पहुंचे, यहां से सुबह चार बजे वह आलू के ट्रक में बैठकर दिल्ली रवाना हुए। अटल कई बार कुमाऊं आए, हल्द्वानी में हमारा घर ही वाजपेयी का ठिकाना हुआ करता था। तब उन्हें युवा हृदय सम्राट कहा जाता था। उन्होंने रामलीला मैदान में जनसभा को संबोधित भी किया। जनसंघ के संस्थापकों में शामिल रहे दीन दयाल उपाध्याय भी 1963 में ग्यारह दिन मेरे घर पर रहे। कुमाऊं में विरोधी का प्रभाव बढ़ रहा था। इसके लिए 1990 के आसपास अल्मोड़ा में एक बड़ा सम्मेलन कराया गया, जिसमें संघ की विचारधारा से लोगों को परिचित कराया गया। भारत के पर्वतीय राज्य उत्तराखण्ड से विशेष लगाव रहा, अटल बिहारी वाजपेयी मसूरी और देहरादून में अक्सर आते थे। वहीं उनकी कई कविताओं में हिमालय के प्रति आदरभाव महसूस किया जा सकता है। उनकी कविताओं में अक्सर हिमालय को संकेत के रूप में रख कर उसका गहन अर्थ निकाला जाता था । देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक अच्‍छे राजनेता के साथ ही बहुत अच्‍छे कवि भी थे। संसद से लेकर अन्‍य मौकों पर अपनी चुटीली बातों को कहने के लिए अक्‍सर कविताओं का इस्‍तेमाल करते थे। उनका मौकों के हिसाब से कविताओं का चयन उम्‍दा रहता था, जिसको अक्‍सर विरोधी भी सराहा करते थे। वर्ष 2002 में प्रदेश में हुए प्रथम विधानसभा चुनावों के ठीक बाद मार्च में होली के मौके पर वाजपेयी प्रधानमंत्री के रूप में उत्तराखंड की सरोवर नगरी नैनीताल प्रवास पर आये और राजभवन में ठहरे। इस दौरान अपनी पार्टी के कुछ लोगों से कथित नाराजगी के कारण वह छुट्टी के मूड में थे और ज्यादा लोगों से नहीं मिले लेकिन राज्य के प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता नारायणदत्त तिवारी से उत्तराखंड को लेकर उन्होंने लंबी वार्ता की।दोनों पुराने मित्रों के बीच हुई इस लंबी वार्ता का परिणाम उत्तराखंड के लिए जबरदस्त सौगात के रूप में सामने आया। अपने प्रवास के आखिरी दौर में वाजपेयी ने नैनीताल राजभवन में स्वयं एक पत्रकार वार्ता कर उत्तराखंड के लिए कई बड़ी घोषणाएं कीं और यह साबित कर दिया कि वह दलगत राजनीति से ऊपर थे। वाजपेयी ने पर्वतीय राज्यों, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के विकास के लिए दस वर्ष का औद्योगिक पैकेज घोषित किया जिसकी खास बात यह थी कि वहां अगले 10 सालों में इन राज्यों में अपनी इकाइयां स्थापित करने वाले उद्योगों को 10 वर्ष तक कर रियायत का लाभ मिला । इस पैकेज के कारण टाटा मोटर्स, नैस्ले, ब्रिटानिया, बजाज ऑटो, हीरो मोटोकार्प, महिंद्रा एंड महिंद्रा जैसी देश की नामचीन कंपनियों ने प्रदेश के हरिद्वार और पंतनगर क्षेत्रों में अपनी इकाइयां लगायीं जिससे प्रदेश का विकास होने के साथ ही हजारों हाथों को काम मिला। वाजपेयी ने नैनी झील के संरक्षण के लिए 100 करोड रूपये की धनराशि भी स्वीकृत की। वाजपेयी के कार्यकाल में ही उत्तराखंड को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा भी मिला जिसमें विकास कार्यों के लिए मिलने वाले ऋण का 90 फीसदी हिस्सा केंद्र सरकार अनुदान के रूप में देती है और केवल 10 फीसदी भाग राज्य सरकार को वहन करना होता है । अपने संसाधन जुटा रहे उत्तराखंड जैसे नव निर्मित राज्य को इस दर्जे से बहुत सहूलियत मिली। भारत रत्न से सम्मानित अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि. लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं

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