महाविद्यालय स्वर्ण जयंती समारोह: भव्य सजावट लड़ियां फूल,फूल से‌ निकले सवालों के चुभते शूल। एक‌विश्लेषण

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रानीखेत – इस माह की 23व 24 तारीख को स्व जय दत्त वैला राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय रानीखेत ने अपने पचास वर्ष की यात्रा का जश्न मनाया। आयोजन को पांच दिवस बीत गए हैं इसलिए यह खबर अब अपना विश्लेषण लेकर‌ प्रस्तुत हुई है।

महाविद्यालय की स्वर्ण जयंती आयोजन को पांच दिवस बीत चुके हैं लेकिन आयोजन की सफलता-असफलता को लेकर चर्चा का फैलाव अब बाजार के नुक्कड़ों की शोभा बना हुआ है। महाविद्यालय में इस स्वर्ण जयंती आयोजन को लेकर पिछले दो माह से तैयारियों की शुरुआत हुई थी लेकिन कार्यक्रम भव्य तो हुआ लेकिन इसे अभूतपूर्व बनाए जाने की कोशिशें परवान नहीं चढ़ सकी। कार्यक्रम में रानीखेत के बाहर से बामुश्किल पांच दर्जन पूर्व छात्र-छात्राएं शामिल हुए और उन्होंने पुरजोशी से महाविद्यालय में बिताए स्वर्णिम दिनों की यादों को ताज़ा करते हुए यादगार मस्ती भरे पलों को जिया, नाचे- गाए,कविता-संस्मरण सुनाए , सामूहिक भोज किया और अपनी कक्ष-कक्षाओं को निहार कर भावुक भी हुए। लेकिन दूसरी ओर रानीखेत और आस-पास रह रहे पूर्व छात्र -छात्राओं में अधिकांश इस जश्न से दूरी बनाते दिखे। कारण, एक हजार रुपए पंजीकरण शुल्क रखे जाने से स्थानीय पूर्व छात्र -छात्राओं में नाराजगी भरी रही वहीं महाविद्यालय प्रशासन अस्सी फीसदी इन पूर्व छात्र -छात्राओं तक आमंत्रण ही नहीं पहुंचा पाया।जिस कार्यक्रम की तैयारी दो माह से चल‌ रही थी उसके आमंत्रण पत्र डेढ़ -दो दिन पहले बंटने शुरू हुए।

यूं तो महाविद्यालय परिसर को बिजली की लड़ियों और रंग-बिरंगे फूलों से दुल्हन सा सजाया गया था। लेकिन इन फूलों से निकले शूल चुभते सवाल बनकर खड़े हैं जिनके जवाब तलाश कर अगर महाविद्यालय प्रशासन संभल पाया तो परिसर में भविष्य के आयोजनों को वह उम्दा बना सकता है।
महाविद्यालय प्रशासन द्वारा आयोजन की बैठकों में एलुमनी एसोसिएशन द्वारा रखे सुझावों को नज़रंदाज़ किया गया और अंत समय में कार्यक्रम में फेरबदल किया गया। समारोह में कुलाधिपति को बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किये जाने का प्रस्ताव भी टेड़ी नजर से अस्वीकार कर दिया गया। बैठक में मुख्यमंत्री को आमंत्रित करने पर एक राय थी लेकिन मुख्यमंत्री को आमंत्रित करने के लिए पहले कार्यालयी कर्मचारी को दून भेजा गया।बाद में आयोजन से दस दिन पूर्व दो प्राध्यापक दौड़ाए गए। जितनी भी बैठकें हुई उनमें स्पष्ट नज़र आया कि कालेज संस्थाध्यक्ष और आचार्यों में इस तरह के बड़े आयोजनों को लेकर न कोई अनुभव है न सक्रियता फिर भी तुर्रा ये की हम सब कर लेंगे।

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कमजोर और कच्ची तैयारियां और एलुमनी एसोसिएशन की सलाह को डस्टबिन में डालने का नतीजा रहा कि एक अभूतपूर्व बनाया जा सकने वाला आयोजन कुप्रबंधन और सियासत का मैदान बन गया जिसमें संस्थाध्यक्ष भी खेलते नज़र आए। चलिए,सांसद , विधायक जन के चुने प्रतिनिधि हैं उनकी कार्यक्रम में उपस्थिति लाज़मी कहीं जा सकती है। लेकिन आयोजन के दोनों दिन दूरदराज से आए पू्र्व छात्र -छात्राओं का अधिकाधिक समय बर्बाद करने का हक आखिर महाविद्यालय प्रशासन को क्यों कर होना चाहिए जबकि इस आयोजन का मुख्य पुनर्मिलन समारोह ही था लेकिन दो दिन महाविद्यालय पर सियासत की प्रेतछाया तारी रही और इससे ऊब कर बाहर से आए
कई पूर्व छात्र यह कहते हुए अलविदा ले लिए कि ये कार्यक्रम तो ऐसी शादी बनकर गया है जहां ब्यौली का पिता बुलाएं गए भाई बिरादरों को तो पूछ नहीं रहा बस.. माननीयों पर बिछा जा रहा है। ये बात नाराज पूर्व छात्रों ने एक टीवी चैनल के आगे खड़े होकर भी कही। सत्तर के दशक के ये छात्र संस्थाध्यक्ष द्वारा उनकी अनदेखी से भी नाराज़ दिखे। सच तो यह है कि किसी भी सरकारी विद्यालय, महाविद्यालय के संस्थाध्यक्ष की मौजूदा सत्ताधीशों के आगे नत होना विवशता हो सकती है लेकिन बिछ जाने से तो जाहिरा तौर पर लगता कि अरे.ये तो पार्टी कार्यकर्ता की तरह कार्य कर रहा है।
अब आइए, कुछ और चुभते सवालों की ओर बढ़ते हैं मुख्य अतिथि, अध्यक्ष को शाल ओढ़ाकर कर सम्मानित करना तो बनता था लेकिन पार्टी विशेष की जिलाध्यक्ष को भी शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया जबकि समारोह में मंच के नीचे बैठे परम पूजनीय गुरु जी डॉ आई एस नायक जो इस‌ वक्त 87वर्ष के हैं जो इस महाविद्यालय के प्राचार्य रहने के साथ ही चार माह कुमाऊं विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति रह चुके हैं साथ ही बरेली से आए 82वर्षीय डॉ जाकिर हुसैन जो इस महाविद्यालय को लम्बा सेवाकाल दे चुके हैं,इन दोनों आदरणीयों को एक अदद शाल ओढ़ाकर सम्मानित करने की जरूरत नहीं समझी गई।
समारोह में इस महाविद्यालय को अस्तित्व में लाने वाले छह वरिष्ठ नागरिकों को सम्मानित तो किया गया लेकिन ये कौन थे?इनकी पृष्ठभूमि पर संक्षिप्त प्रकाश डालने की जरूरत नहीं समझी गई। गजब तो तब हुआ जब स्वतंत्रता सेनानी स्व जय दत्त वैला जिनके नाम पर महाविद्यालय है उनके लिए दो शब्द बोलने में मंच को सांप सूंघ गया यहां तक उनका एक चित्र भी मंच पर नहीं रखा गया। प्रथम बैच के पू्र्व छात्र -छात्राओं को सशुल्क सम्मानित करना भी चर्चा के दायरे में है। महाविद्यालय के दिवंगत पूर्व छात्र -छात्राओं जिन्होंने किसी भी क्षेत्र में अपना योगदान दिया हो उन्हें श्रद्धांजलि देना तय था साथ ही इन पचास सालों में विश्वविद्यालय से लेकिन राष्ट्रीय स्तर‌ तक खेले पूर्व छात्र -छात्राओं को सम्मानित किया जाना था लेकिन माननीयों के प्रशस्ति गायन के नीचे सब कुछ दबा दिया गया।
इस समारोह में अगर किसी बात ने सुकून दिया तो बच्चों की सांस्कृतिक प्रतिभा ने। महाविद्यालय के नव पल्लवों की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने एक उम्मीद जगाई कि इस दिशा में भी और परिश्रम आगे दिखेगा।
इस अभूतपूर्व नहीं तो जकमग कार्यक्रम का अगर कुछ सुखद प्राप्य है तो वह है अलग-अलग स्थानों से आए पू्र्व छात्र -छात्राओं का जुटना और अपनी मस्त मिजाज़ी में जीते हुए इन पलों को अपनी आंखों और छायाचित्रों में कैद करना और अपनी उन्मुक्त प्रस्तुतियों से युवाकाल को जी भर कर फिर से पा लेना।
हर आयोजन अपनी खामियों से ही सबक पाता है और उन्हें नज़रंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए अपितु उनपर गौर कर आगे के रास्ते पर बढ़ना चाहिए।