जीवन भर वंचितों के लिए लड़ते रहे स्व विपिन चंद्र त्रिपाठी

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड राज्य की परिकल्पना पर उन्होंने एक बहुत तार्किक और तथ्यात्मक पुस्तिका निकाली जिसने न केवल उक्रांद के राजनीतिक एजेंडे के रूप में काम किया, बल्कि आम लोगों को भी राज्य की जरूरत को समझाने में सफल हुआ। वे लगातार पार्टी को बनाने जुट गये। पार्टी ने अपने कार्यक्रम देने शुरू किये। 1985 से लेकर 1989 तक पार्टी ने संगठनात्मक और कार्यक्रमों के माध्यम से अपनी जगह बना ली थी। नवंबर 1987 में दिल्ली के बोट क्लब पर रैली, कुमाऊं और गढ़वाल कमिश्नरियों का घेराव, बंद-धरना प्रदर्शनों के माध्यम से भी उत्तराखंड राज्य का सवाल मजबूत होने लगा। इस पूरी कवायद में बिपिन त्रिपाठी की सोच काम कर रही थी। वन अधिनियम 1980 के खिलाफ जब पार्टी ने 1989 में व्यापक आंदोलन छेड़ा तो बिपिन दा उसके नेतृत्व में थे। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इन तमाम आंदोलनों को जनता ने भी समर्थन दिया। 1989 के चुनाव में पार्टी के दो विधायक आये वहीं लोकसभा की दो सीटों अल्मोड़ा और टिहरी पर पार्टी के उम्मीदवार बहुत कम अंतर से हारे। यह अलग बात है उक्रांद इस पूरे राजनीतिक माहौल को बाद में अपने पक्ष में नहीं कर पाया।इसी बीच राज्य के भावी स्वरूप को लेकर पार्टी ने एक घोषणा पत्र तैयार किया। यह घोषणा पत्र उत्तराखंड राज्य का ‘ब्लू प्रिंट’ था। इसे 14 जनवरी 1992 में बागेश्वर में जारी किया गया। इस घोषणा पत्र में गैरसैंण को राजधानी बनाने के अलावा कर्इ महत्वपूर्ण मुद्दों को शामिल किया गया है। इसे बनाने में त्रिपाठी जी भी शामिल रहे। पार्टी की सोच थी कि 24 जुलार्इ 1992 को गैरसैंण में एक विशाल सम्मेलन कर गैरसैंण का नामकरण वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली के नाम पर ‘चन्द्रनगर’ किया गया। यहां राजधानी का शिलान्यास भी कर दिया। चन्द्रसिंह गढ़वाली की सौवी जयंती पर 25 दिसंबर 1992 को चन्द्रसिंह गढ़वाली की आदमकद मूर्ति का अनावरण भी कर दिया गया। इस पूरे आयोजन के शिल्पी बिपिन दा थे। सही अर्थो में राजधानी गैरसैंण की कल्पना और उसे जन-जन तक पहुंचाने का काम बिपिन दा की दूरदर्शी सोच का परिणाम है। त्रिपाठी जी का पूरा जीवन फिर उत्तराखंड राज्य संघर्ष में लग गया। 1994 में राज्य के निर्णायक आंदोलन में उक्रांद और संयुक्त संघर्ष समिति मे उनकी नेतृत्वकारी भूमिका रही।बिपिन दा संवैधानिक पदों पर तो बहुत बाद में आये इससे पहले ही वे अपने क्षेत्र के कर्इ विकास कार्यों को अपने बल पर करा चुके थे। उनका शिक्षा और सामाजिक चेतना के प्रति हमेशा प्रगतिशील समझ रही। द्वाराहाट क्षेत्र को शिक्षा और विकास के रूप में नर्इ पहचान दिलाने में उनका अविस्मरणीय योगदान रहा। द्वाराहाट में पाॅलीटैक्नीक, डिग्री काॅलेज, इंजीनियरिंग काॅलेज बनाने के लिये उन्होंने कर्इ बार अनशन किया। जेल गये। आज द्वाराहाट शिक्षा के महत्वपूर्ण केन्द्रों में से एक है। ये सब काम वे पदों में आने से पहले कर चुके थे। वे पहली बार 1989 में द्वाराहाट विकासखंड़ के प्रमुख बने। देश में पहली बार ग्रामीण विकास के लिये बड़े बजट का प्रावाान किया जा रहा था। केन्द्र सरकार ने ‘जवाहर योजना’ शुरू की थी। इस योजना से जहां गांवों में विकास के लिये पैसा आ रहा था वहीं सरकार के नुमाइंदे और जनप्रतिनिधि इसे ठिकाने लगाने के रास्ते तलाशने लगे थे। तब लोगों ने तंग आकर इसका नाम ‘जहर योजना’ रख दिया था।बिपिन दा ने ऐसे समय में ग्रामीण विकास का नया दर्शन दिया। उन्होंने काश्तकारों को इस बात के लिये प्रेरित किया कि अपने संसाधनों का सही इस्तेमाल करना सीखें। द्वाराहाट विकासखंड में उन्होंने उन्होंने अपने कार्यकाल में बहुत ही पारदर्शिता और र्इमानदारी से विकास के बजट का इस्तेमाल किया। उनके समय में द्वाराहाट में लोगों ने डेरी उद्योग, फलोत्पादन और सब्जी उत्पादन जैसे क्षेत्रों को अपनाया। हालांकि त्रिपाठी जी का एक विधायक के रूप में कार्यकाल मात्र दो-ढार्इ साल का रहा, लेकिन उन्होंने विधानसभा में अपनी बौद्धिकता से पहाड़ की नीतियों पर बहुत तथ्यात्मक, व्यावहारिक और दूरदर्शी नीतियों की बात रखी। अपने क्षेत्र के विकास के साथ वे पूरे राज्य के लिये जनपक्षीय नीतियों के लिये अंतिम समय तक लड़ते रहे। राजधानी, परिसीमन, परिसंपत्तियों, विकल्पधारियों के सवाल को जितनी प्रखरता से उन्होंने विधानसभा और उससे बाहर उठाया वह उनकी राजनीतिक इच्छाशक्ति को भी दर्शाता था। उत्तराखंड क्रान्ति दल के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने पार्टी को सैद्धान्तिक और संठनात्मक दोनों तरह से मजबूत बनाने का काम किया।बिपिन दा को याद करने का मतलब इतिहास के एक समय को याद करना है। आंदोलनों के एक दौर के प्रतिनिधि रहे बिपिन दा। त्रिपाठी जी और आंदोलन एक दूसरे के पर्याय थे। एक जीवट व्यक्तित्व के रूप में तो हम विपिन दा को याद करना प्ररेणाप्रद हो सकता है। सिद्धान्तों के प्रति जिद्दी बिपिन दा से आप खीज भी सकते हैं। उनसे असहमत लोगों की एक बड़ी जमात है। ऐसे असहमत लोगों में उनके विपक्षी तो थे ही उनकी धारा के लोग भी थे। बिपिन दा के साथ उनके साथियों की भिडंत हर बार नये संदर्भों में हो जाती। अपनी सही बात को मनवाने की जिद वे हद से बाहर तक कर सकते थे। जो उनकी समझ में नहीं आता उसे स्वीकार नहीं करते। इसका बहुत नुकसान उन्हें अपने राजनीतिक जीवन में उठाना पड़ा।राजनीति में सुचिता और र्इमानदारी को जिस तरह उन्होंने गांठ बांध लिया उसका फल भी उन्हें चुनाव में भुगतना पड़ा। वे हर चुनाव में भागीदारी करने की बीमारी से भी त्रस्त रहे। शायद ही कोर्इ चुनाव था जो उन्होंने छोड़ा। इसे वह अपनी बात कहने का मंच मानते थे। वे चुनाव तो राज्य बनने के बाद जीते उससे पहले सभी चुनाव हारे। लेकिन जब वे चुनाव प्रचार में जाते तो उन्हें सुनने के लिये हर पार्टी, हर तबके के लोग आते। चाहे वे उनसे सहमत हों या असहमत। लोकतांत्रिक व्यवस्था में अभिव्यक्ति को उन्होंने बहुत कस कर पकड़े रखा। इससे कोर्इ फर्क नहीं पड़ता की उनकी बात मानी ही जाये। गांधी के इस विचार को वे जीवन भर आत्मसात करते रहे कि- ‘साध्य को प्राप्त करने के लिये साधनों की पवित्रता आवश्यक है।’ आज जब राजनीति भ्रष्टाचार के दलदल में गोते लगा रही है तो ऐसे में सहसा याद आते हैं, द्वाराहाट के पूर्व विधायक स्वर्गीय विपिन चंद्र त्रिपाठी। आज के मौजूदा राजनीतिक दौर में विपिन चंद्र त्रिपाठी को याद करना किसी अपवाद से कम नहीं है । जीवन भर समाज के दबे कुचले और वंचित वर्ग के लिए लडने में विपिन चंद्र त्रिपाठी ने अपने जीवन को समर्पित कर दिया, चाहे वन बचाओ आंदोलन हो या चिपको आंदोलन, चांचरीधार आंदोलन हो या महंगाई के खिलाफ आवाज बुलंद करना हो, अथवा उत्तराखंड राज्य आंदोलन की लडाई सभी में हमेशा आगे रहे ।बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी विपिन चन्द्र त्रिपाठी (विपिन दा)। जल, जंगल, जमीन के संघर्ष  को लेकर उन्होंने भूख हड़ताल से लेकर आमरण अनशन तक  किया और जेल भी गए। आज भले ही उनकी पुण्य तिथि पर हम उन्हे श्रद्धांजलि ही अर्पित कर सकते हैं, परंतु श्री विपिन चंद्र त्रिपाठी आज भी हमारी स्मृतियों में विद्यमान हैं। श्री त्रिपाठी का जन्म 23 फरवरी 1945 में द्वाराहाट के ग्राम दैरी में हुआ था। उनके पिता मथुरादत्त त्रिपाठी डाक विभाग में कार्यरत थे। उन्होनें अपने जीवन की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही ग्रहण की और इसके बाद वह माध्यमिक शिक्षा के लिए नैनीताल जिले के मुक्तेश्वर चले गए।उच्च शिक्षा के दौरान ही उनके ऊपर  प्रसिद्ध समाजवादी रहे डा. राम मनोहर लोहिया व आचार्य नरेन्द्र देव के विचारों का प्रभाव पड़ा। इनके विचारों से प्रभावित होकर वह वर्ष 1967 से ही आंदोलन में कूद गये। वर्ष 1972 में प्रजा सोशलिस्ट द्वारा चलाये गये भूमि आंदोलन में भी उनकी सक्रिय भागीदारी रही। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय महंगाई के विरोध में आवाज बुलंद की। विपिन चंद्र त्रिपाठी ने वन अधिनियम, 1989 में भूमि संरक्षण आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई । आपातकाल के समय 06 जुलाई 1975 को जेल भी गये। 22 महीने जेल में सजा काटने के बाद बाहर निकले तो जनता पार्टी की सरकार सत्ता हासिल करने जा रही थी तो उन्होंने युवा शाखा से इस्तीफा दे दिया। इतना ही नहीं वह हमेशा सत्ता सुख से दूर रहे। इसके बाद उन्होंने द्वाराहाट को अपनी कर्मभूमि बना लिया। उनकी बढती लोकप्रियता ही थी कि वह वर्ष 1989 में द्वाराहाट के ब्लाक प्रमुख बने। इस दौरान उन्होंने द्वाराहाट के लिए अनेक विकास कार्य करवाए। विपिन चंद्र त्रिपाठी का कार्यकाल देख चुके लोग बताते हैं कि ब्लाक प्रमुख होने के बावजूद अधिकारी उनकी ईमानदार और स्वच्छ छवि से घबराते थे ।अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने छोटे से कस्बे द्वाराहाट में शासन पर दबाब बनाकर राजकीय इंजीनियरिंग कालेज, राजकीय पॉलिटेक्नीक, राजकीय महाविद्यालय खोलने के अलावा कई  विकास कार्य किये। इसके लिए भूख हड़ताल व आमरण अनशन तक किया। वर्ष 1984 में नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन  में 40 दिन तक जेल रहे। वर्ष 1980 से उत्तराखंड क्रांति दल से जुड़ने के बाद महासचिव से अध्यक्ष पद तक का सफर तय किया। वर्ष 1992 में बागेश्वर में उन्होंने उत्तराखंड का ब्लू प्रिंट तैयार किया। उनके द्वारा तैयार किए इस प्रिंट पर ही पार्टी ने घोषणा पत्र तैयार किया। श्री त्रिपाठी ने वर्ष 1974 में बारामंडल सीट से पहला चुनाव लड़ा लेकिन अविभाजित उत्तर प्रदेश में बडे भौगोलिक और कई समीकरणों में उलझी सीट पर उन्हें हर बार हार का सामना करना पडा । उत्तराखंड राज्य गठन के बाद द्वाराहाट सीट के अस्तित्व में आने पर राज्य के पहले विधानसभा चुनाव में द्वाराहाट के विधायक बने। उन्होंने अपने विरोधियों को करारी शिकस्त दी | लेकिन सत्ता सुख से दूर रह कर समाज के लिए संघर्ष करने वाले इस महान क्रांतिवीर का 30 अगस्त 2004 को निधन हो गया। लेकिन उनके विचार और उनका जुझारू व्यक्तित्व आज भी समाज के लिए प्रासंगिक है ।विपिन त्रिपाठी आम जनता में बेहद लोकप्रिय थे | द्वाराहाट की सडकों पर उन्हें पैदल चलते ही देखा जा सकता था | विधायक बनने के बाद भी वह सादगी से जीते रहे | द्वाराहाट के सुदूर बसे गांवों में भी श्री त्रिपाठी का व्यक्तित्व और आचरण इतना लोकप्रिय था कि वह सीमित संसाधनों के होते हुए भी चुनावों में अच्छे मत प्राप्त करते थे | यह उनकी लोकप्रियता ही थी कि वह द्वाराहाट के ब्लाक प्रमुख और राज्य गठन के बाद विधायक बने |विपिन चंद्र त्रिपाठी को यूकेडी पार्टी का थिंक टैंक कहा जाता है | वैचारिक और राजनीतिक रूप से सक्षम विपिन त्रिपाठी के विषय में कहा जाता हैसशक्त भू कानून, राजधानी गैरसैंण, पलायन का दंश दूर कर बुनियादी सुविधाओं को बढ़ाने एवं रोजगार तथा उत्तराखंड में ईमानदार संस्कृति के लिये उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। इस पर वे जीवन भर चले। राज्य बनने के बाद पहली विधानसभा के लिये वे द्वाराहाट विधानसभा क्षेत्र से चुने गये। अभी उनके कार्यकाल का ढार्इ साल भी पूरा नहीं हुआ था 30 अगस्त 2004 को हृदयगति रुक जाने से उनका देहावसान हो गया। बिपिन दा को विनम्र श्रद्धांजलि।
लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

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