अभिव्यक्ति कार्यशाला वार्षिक आयोजन ‘आवाहन’ के तहत ‘लोक उत्सव’ मे ‘एक चाणक्य ऐसा भी’ नाटक का सफल मंचन

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सी एम पपनैं

नई दिल्ली। अभिव्यक्ति कार्यशाला द्वारा आयोजित, वार्षिक आयोजन ‘आवाहन’ के तहत ‘लोक उत्सव’ मे, उत्तराखंड के इतिहास के तीन कालखंडों को प्रभावित करने वाले, कूटनितिज्ञ व मिथक माने जाने वाले हर्षदेव जोशी (1747-1815) के जीवन पर केन्द्रित, चारु तिवारी रचित व मनोज चंदोला द्वारा निर्देशित नाटक, ‘एक चाणक्य ऐसा भी’ का मंचन 27 मार्च की सांय, लोधी रोड स्थित, इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर के प्रेक्षागृह मे, ‘अभिव्यक्ति कार्यशाला’ अध्यक्ष टी सी उप्रेती, मुख्य अतिथि केन्द्रीय रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट, पूर्व हिंदी अकादमी सचिव, दिल्ली सरकार, डाॅ हरिसुमन बिष्ट, उत्तराखंड की फिल्म प्रोड्यूसर रमा उप्रेती, साहित्यकार रमेश घिन्डियाल, डाॅ राजेश्वर कापडी, अजय सिंह बिष्ट, सुरेश नोटियाल, प्रेम बहुखंडी, आदित्य कश्यप तथा उत्तराखंड के प्रबुद्ध साहित्यकारों, पत्रकारो, रंगकर्मियो इत्यादि से, खचाखच भरे सभागार मे, सफल मंचन किया गया।

अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ ही, ‘लोकउत्सव’ के पहले कार्यक्रम के तहत, ‘एक चाणक्य ऐसा भी’ नाटक मंचन से पूर्व, संस्था अध्यक्ष टी सी उप्रेती द्वारा, मुख्य अतिथि तथा सभागार में उपस्थित सभी दर्शकों का स्वागत किया गया। संस्था के द्वारा किए गए, विगत आयोजनों के बावत अवगत कराया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि, रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट द्वारा व्यक्त किया गया, उत्तराखंड की लोक संस्कृति अव्वल है। उत्तराखंड के लोग अपनी संस्कृति के प्रति समर्पित रहे हैं। देश दुनिया के नेतृत्व की क्षमता, उत्तराखंड के लोग रखते हैं। झोडा, चांचरी, लोकगीत-संगीत, होली व अन्य कई स्थानीय त्यौहार हम उत्तराखंडियों को सदा अपनी संस्कृति से जोड कर रखती है, चाहे हम प्रवास मे कही भी निवासरत रहे। मंचित नाटकों, सांस्कृतिक आयोजनों व अपनी बोली- भाषा से आज की पीढी को, अपनी परंपराओ व संस्कृति का ज्ञान होता है। अपनी बोली-भाषा जरूर बोलनी चाहिए, अपनी परंपराओ व लोकसंस्कृति को अपनाना चाहिए, यह हमारी असली पहचान है। हमारी जडे बहुत मजबूत हैं। एक दूसरे से मिलते रहे। मजबूती से एकता का परिचय देते रहे।

ऐतिहासिक प्रमाणों पर आधारित, मंचित नाटक, ‘एक चाणक्य ऐसा भी’ का कथासार, नाटक के अंत मे, मुख्य पात्र हर्षदेव जोशी के दिए वक्तव्य से समझा जा सकता है।
‘किसे ढूढ़ रहे हो इतिहास? फिर कभी खुलेगा इतिहास में, अगर खुला तो…उसमे कहानी होगी मेरे पुरखो की, मेरे कामो को दखैगे, परखैगे, मुझे धूर्त समझा गया, कूटनीतिज्ञ कहा गया, मुझे स्वार्थी कहा, अंग्रेजो, गोरखो को लाने वाला मुझे कहा। मैने एक सपना देखा था। अगर मेरा सपना, मेरी कुटिलता थी, मैं नहीं जानता, इतिहास मुझे किस तरह याद करेगा, इतिहास किस तरह मुझे याद रखेगा।’

उक्त व्यक्त संवाद से नाटक के कथा सार को समझा जा सकता है, बया किया जा सकता है। हर्षदेव जोशी व सुदर्शन शाह के बीच हुआ कूटनीतिक वाद-विवाद, मंचित नाटक को विस्तार देता नजर आया। हर्षदेव जोशी व सुदर्शन शाह की भूमिका में क्रमश: सुधीर रिखाडी व दीपक राणा, अंग्रेज अफसर महेन्द्र लटवाल, जयकृत शाह अखिलेश भट्ट, गोरखा अफसर डाॅ सतीश कालेश्वरी, ललित शाह रमेश ठन्गरियाल, गांव की महिलाओ व पुरुष मे क्रमश: कुसुम चौहान, सविता पंत व भूपाल सिंह का दमदार अभिनय रहा। वंश मल्होत्रा, जगमोहन रावत, ममता व कमल कर्नाटक, राहुल गिरी, हिमांशु, नवीन दिवाकर, सूफियान, आस्था मंडल व रश्मि कुकरेती का अभिनय भी दर्शकों द्वारा सराहा गया। भगवत मनराल का नृत्य निर्देशन तथा भावना पंत का मंच संचालन, प्रभावशाली था।

मंचित नाटक के संवाद सटीक व मंचित कुछ दृश्य, प्रभावशाली थे। रूप सज्जा व वस्त्र सज्जा पात्रों के अनुकूल थी। नाटक के प्रस्तुतिकरण मे कुछ खामियां दृष्टिगत थी। संक्षिप्ततया मनोज चन्दोला द्वारा निर्देशित नाटक, दर्शकों की राय मे, ठीक-ठाक रहा।

अवलोकन कर ज्ञात होता है, सामाजिक, सांस्कृतिक और रंगमंच से जुडी संस्था ‘अभिव्यक्ति कार्यशाला’ का तैतीस वर्षों का शानदार व दमदार सफर रहा है। इस संस्था की स्थापना वर्ष 1985 दिल्ली प्रवास मे, उत्तराखंड के प्रबुद्ध प्रवासी बंधुओ द्वारा की गई थी। इन विगत वर्षों मे, इस संस्था द्वारा, नाट्य उत्सव, युवा उत्सव, गोष्ठी, सेमिनार जैसे आयोजन सामाजिक चेतना, सौहार्द, भाईचारे और सहकारिता के विचारों को आगे बढ़ाने के लिए, उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल सहित, राज्य के अन्य कई शहरो तथा दिल्ली मे आयोजित किए जाते रहे हैं। उक्त संस्था द्वारा, 2014 से उत्तराखंड की सांस्कृतिक थाती को प्रवास और अंचल मे अक्षुण्य रखने के लिए, ‘आवाहन’ नाम से वार्षिक आयोजन की शुरुआत की गई, जिसके तहत उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर, भाषा-बोली, साहित्य, लोकगीत-संगीत, विकास की अवधारणा एव पर्यावरण के साथ-साथ, भिन्न विषयों पर सेमिनार, उद्यम से जुडे कार्यक्रम, रंगमंच आदि पर प्रभावशाली कार्यक्रम, आयोजित किए जाते रहे हैं।

उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए, हिमालय के आदि गायक, कहे जाने वाले ‘बेडा समाज’ के इतिहास, गीत-यात्रा, और उनके संरक्षण संवर्धन के लिए कार्यक्रम आयोजन, डाक्युमैंट्री व पुस्तक प्रकाशन कार्य कर, दायित्व निभा, अपने उद्देश्य मे यह संस्था सफल रही है। उत्तराखंड के जनमानस के मध्य व्याप्त पुराने लोकगीतों को फ्यूजन के साथ प्रस्तुत करने व 2016 दिल्ली मे, ‘फ्यूजन शो’ आयोजित कर, उक्त गीतों को नए संगीत के साथ रु..ब..रु कराने की, नायाब पहल भी, इस संस्था द्वारा की गई है।

संस्था अध्यक्ष टी सी उप्रेती व महासचिव मनोज चंदोला का मानना रहा है, सदियों से संचित सांस्कृतिक विरासत, संस्था सदस्यों को रचनात्मकता से जोडती है। साथ ही संवेदनाओ के साथ, चीजो को समझने की चेतना भी देती है। बदलते सामाजिक परिवेश और लोक विधाओ के सामने जो चुनौती है, उन्हे समझते हुए, इनके संरक्षण, संवर्धन और मौजूदा समय में इस सबकी प्रासंगिकता पर, संस्था अध्यक्ष टी सी उप्रेती बल देते नजर आते हैं। देश के बडे उद्योग जगत से, विगत कई दशकों जुडे रहे, टी सी उप्रेती का मानना है, उत्तराखंड के पास बहुत सारी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, पर्यावरणीय और प्रकृति प्रदत्त धरोहर हैं, जो उत्तराखंड के शुभ चिंतको को, क्षेत्र के, सर्वांगण विकास का रास्ता सुझाती हैं। ‘अभिव्यक्ति कार्यशाला’ इसी सांस्कृतिक व प्रकृति प्रदत्त चेतना से, प्रेरणा ले, अपनी यात्रा को निरंतर जारी रखे हुए है।
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