….और‌ क्यों न इस बार दीपक आप बन जाएं

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उमंग, उल्लास, उत्कर्ष और उजास का मंगल पर्व दीपोत्सव आ पहुंचा है। ऐसे में हमारा उत्सवधर्मी मन गहन निराशा में भी इस पर्व के स्मरण मात्र से प्रसन्नता के पारावार में तैरने लगता है। उजास का यह पर्व कितने मनोभाव रौशन कर देता है, मन में आशाओं के रंग -बिरंगे फूल मुस्कुराने लगते हैं। इस मनोरम पर्व की रौशनाई में हम इतने समा जाते हैं कि राग, द्वेष, विषाद संकट, कष्ट संताप सब कुछ भूल जाते हैं। सच यही है कि अपने अंतरतम में पैठ गए सघन अंधेरे से लड़ने और अंतस को रौशन करने का पर्व है दीपावली। इस पर्व पर मात्र गेह और देह की सफाई नहीं करनी है अपितु मन के उन कोने -अंतरों को भी साफ करना है जो राजनैतिक कटुता, व्यर्थ की अभिलाषाओं, विषय विकारों से अटे पड़े हैं।

इस पर्व के प्रति हमारी दृष्टि मात्र मनोरंजन केंद्रित नहीं होनी चाहिए, इसमें तात्कालिकता के स्थान पर शाश्वतता और सनातनता को तलाशा जाना चाहिए इस पर्व में अंतर्निहित हैं। केवल उमंग-उल्लास ही नहीं, इसमें निजी और सामुदायिक, यानी व्यैक्तिक सामाजिक उत्थान का भाव निहित है। वास्तव में पर्व आत्मा को निरंतर समृद्ध एवं मनुष्यता को विकसित करने के उपक्रम है ।ये हमारी सामाजिक सहभागिता को मजबूत करते हैं ।

दीपोत्सव की रौशनाई में आइए,नए संकल्प का दीप प्रज्वलित कर उसे पूर्ण करने में जुट जाएं, अपूर्ण इच्छा -ओं को नूतन स्वप्न में बदलें,फिर स्वप्न को कर्म से अर्थ दें। स्वप्नों के मरने से जीवन नहीं मरता है वहां अंतहीन है। हममें जब यह संकल्प जाग्रत होता है तभी क्रांति घटित होती है। ऐसे में, उत्तराखंड के उन अंधेरे कोनों में ं जहां नए जनपदों को लेकर दशकों से नाउम्मीदी और असंतोष का अंधेरा पसरा है संकल्प का नन्हा सा दीप उस तम को को हटाने में समर्थ है ।जी हां, दीपोत्सव का एक नन्हा सा दीप हमारी प्रेरणा का पुंज बन सकता है ।दीप पर्व पर एक नन्हा सा दीप।नाजुक सी बाती। उसका शीतल सौम्य उजास। झिलमिलाती रौशनियों के बीच इस कोमल दीप का सौंदर्य बरबस ही मोह लेता है। कितना सात्विक, कितना धीर। बेशुमार पटाखों के शोर में भी शांत भाव से मुस्कुराता हुआ टूट कर बिखर -बिखर जाती अनार की रौशन लड़ियों के बीच जरा भी नहीं सहमता, थोड़ा सा झुकता और फिर तैयार पूरी तत्परता से जहान को जगाने के लिए।यही है संदेश दीपों के पर्व का।

आइए, इस दीप पर्व पर सबसे पहला दीप रौशन करें तो याद करें राष्ट्र लक्ष्मी को। कामना करें कि यह राष्ट्र और यहां विराजित लक्ष्मी सदैव वैभव और सौभाग्य की अधिष्ठात्री बनी रहे। दूसरा दीप जलाएं तो याद करें सीमा पर तैनात कुलदीपकों को, जिनकी वजह से आज हमारे घरों में स्वतंत्रता और सुरक्षा का उजाला है। तीसरा दीप स्वयं के भीतर रौशन करें ईमानदारी का। ताकि समाज में निरंतर गहराते भ्रष्टाचार के तिमिर घोर अंधियारे को चीरने का साहस भीतर से जागृत हो सके।

चौथा दीप प्रज्वलित करें इस देश की नारी अस्मिता के नाम जो परिवर्तित युग की विकृतियों से जूझते हुए भी जीत की मशाल लिएआगे बढ़ रही है बिना रुके, बिना थके और बिना झुके ।यह दिव्य लक्ष्मी अपने अनंत गुणों के साथ इस धरा पर ना होती तो सोचें कैसे रंगीन होते हमारे पर्व। श्रृंगार हीन और श्री हीन। दीप पर्व पर श्रृंगार, सौन्दर्य और सौभाग्य की घर में विराजित देवी के साथ हम सब के आंगन में दिल नहीं दिए जलें। पांचवा दीप प्रज्वलित करें अपने आस-पास अधिकांस की काली रात के विरुद्ध। और संकल्प और जज्बे की‌ लौ को इतना रौशन करें कि अन्याय की ‘छावनी’ से मुक्ति मिले। और हां, नए जनपद आने वाली नस्लों के लिए स्वप्न न रहेंअपितु विकास का खुला उजास लेकर सृजित हों। दीपोत्सव नन्हें-नन्हें दीपों का विराट अंधियारे से लड़ने का प्रतिकार्थ संप्रेषित करने वाला पर्व है।

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सांसारिक झिलमिलाती रौशनियों के बीच सुकोमल दीप की तरह आप सदा मुस्कुराए। और क्यों ना इस बार दीपक आप बन जाएं! ‘देह’ के दीप में ‘आत्मा’ की बाती को ‘आशा’ की तीली से रौशन करें। ताकि महक उठे खुशियों की उजास अपने मन आंगन में। दीप पर्व की सभी को मंगल शुभकामनाएं।।